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वीर जिनवरनिर्वाण.
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८९६
॥ त्रुटक ॥
तारता जनकं भवोदधिथी परम पुरण गुणनिहि, गजराज गति जिनराज पाया परिसरे आव्या वही; थई बधाई नगर सबले सज्जन वह साहमे वहे, वर पुष्प मुक्ताफल बचावी सकल मंगल सुख लहे ॥४॥
॥ हाल ॥
आयाजी मुनिपति नरपति हस्तिपाल घर आया, पायाजी सुमणि सुरतरु अधिक महोदय पाया; वंझाजी अति प्रमुदित भूपती त्रिभुवन तारकज राया, ठायाजि तसु दर्शित वंछित दाण सभा सुखदाया || ॥ त्रुटक ॥
धन धन जे थानक जसु भितर वीर परम गुरु ठाया, छत्रत्रय चामर जिनजि सोभित सिंहासन शुभ पाया ॥ मंदार कुसुमे प्रभु वधाया मनरमाया सचिगणे, चिरकाल जीवो जगत दीवो तरणतारण इंम धूणे ॥ १ ॥ चौमासीजी वर्द्धमान जिन तिहां रह्या
विधिसेतिजी नव नव अभिगृह मुनिगृहा, परदेसीजी श्रोताजन आया बहि; प्रभुवचनेजी तत्त्वगृहे ते गह गहि ||
॥ त्रुटक ॥
गह गहि श्रुतरस अमृत पिना आत्म समता भावता, परभाव परणति दूर वमता सुमति रमणी रमावता; वीयराय वंदन भत्र निकंदन गुण आनंदने पावता, परमात्म सेवन अहवासिद्धि एह इहा लावता ॥ २ ॥
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