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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वीर जिनवरनिर्वाण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९६ ॥ त्रुटक ॥ तारता जनकं भवोदधिथी परम पुरण गुणनिहि, गजराज गति जिनराज पाया परिसरे आव्या वही; थई बधाई नगर सबले सज्जन वह साहमे वहे, वर पुष्प मुक्ताफल बचावी सकल मंगल सुख लहे ॥४॥ ॥ हाल ॥ आयाजी मुनिपति नरपति हस्तिपाल घर आया, पायाजी सुमणि सुरतरु अधिक महोदय पाया; वंझाजी अति प्रमुदित भूपती त्रिभुवन तारकज राया, ठायाजि तसु दर्शित वंछित दाण सभा सुखदाया || ॥ त्रुटक ॥ धन धन जे थानक जसु भितर वीर परम गुरु ठाया, छत्रत्रय चामर जिनजि सोभित सिंहासन शुभ पाया ॥ मंदार कुसुमे प्रभु वधाया मनरमाया सचिगणे, चिरकाल जीवो जगत दीवो तरणतारण इंम धूणे ॥ १ ॥ चौमासीजी वर्द्धमान जिन तिहां रह्या विधिसेतिजी नव नव अभिगृह मुनिगृहा, परदेसीजी श्रोताजन आया बहि; प्रभुवचनेजी तत्त्वगृहे ते गह गहि || ॥ त्रुटक ॥ गह गहि श्रुतरस अमृत पिना आत्म समता भावता, परभाव परणति दूर वमता सुमति रमणी रमावता; वीयराय वंदन भत्र निकंदन गुण आनंदने पावता, परमात्म सेवन अहवासिद्धि एह इहा लावता ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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