________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८६२
स्रात्र पूजा.
॥ ५ ॥ जगपति जिनवर सुखकर, होशे पुत्र मनोहर || इंद्रादिक जसु नमशे, सकल मनोरथ फलशे ॥ ६ ॥ ॥ वस्तुच्छंद ॥
॥ पुण्यउदय पुण्यउदय उपना जिननाह, माता तव रयणी समे, देखी सुपन हरखंती जागीय ॥ सुंपन कही निज कंतने, सुपन अरथ सांभलो सोभागीय | त्रिभुवन तिलक महागुणी, होशे पुत्र निधान ॥ इंद्रादिक जसु पाय नमी, करशे सिद्धि विधान ॥ १ ॥
॥ ढाल ॥ चोथी ॥ चंद्रावलानी देशीमां ॥
॥ सोहमपति आसन कंपियो ए, देइ अवधि मन आणंदियो ए ॥ निज आतम निर्मल करण काज; भव जलतारण प्रगट्यो झहाज ॥ १ ॥ भवअडवी पारंग सत्यवाह, केवल नाणाइय गुण अगाह || शिव साधन गुण अंकूरो जेह, कारण उलट्यो आसाढि मेह ॥ २ ॥ हरखें विकसी तव रोमराय, वलयादिकमां निज तनु न माय ॥ सिंहासनथी उठ्यो सुरिंद, प्रणमंतो जिन आनंदकंद || ३ || सग अडपय साहामो आवि तत्थ, करि अंजलीय प्रणमीय मच्छ । मुखें भांखे ए क्षण आज सार, तिय लोय पहु दीठो उदार ॥ ४ ॥ रेरे निसुणो सुर लोय देव, विषयानल तापित तुम सवेव ॥ तसु शांति करण जलधर समान, मिथ्या विष चूरण गरुडवान ॥ ५ ॥ ते देव सकल तारण समत्थ, प्रगट्यो तसु प्रणमी हवो सनाथ || एम जंपी शक स्तव करेवि, तब देख देवी हरखें सुवि ॥ ६ ॥ गावे तत्र रंभा गीत गान, सुरलोक हवो मंगल निधान ॥ नरक्षेत्रे आरिज वंश ठाम, जिनराज
१२
For Private And Personal Use Only