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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५४ स्नात्र पूजा विधि. ॥ अथ कलश ढालवा समयनुं स्तवन ॥ ॥ इंद्र कलशभर ढाले श्रीजिन पर ॥ इंद्र कलश० ॥ हाथो हाथ अमरगण आनत, खीर विमल जलधारे ॥ श्री जिनपर० ॥१॥ सुरवनिता मलि मंगल गावे, भावत भाव महारे ॥ श्री जिनपर० ॥ २ ॥ किन्नर अरु गंधर्व महोरग निरत नीर नित्य सारे ॥ श्री जिनपर० ॥३॥ देव इंदुभिधुनि गर्जत अति, शिर पर सुजस विथारे ॥ श्रीजिनपर ॥४॥ परमानंद जिनराज जगतपद, जगजीवन हितकारे ।। श्रीजिनपर० ॥ ५ ॥ इति कलश ढालवा समयनुं स्तवन ।। ॥पछी रकेबीमां लणपाणी लइने आरतिनी परे करवू अने ते वखतें मुखयकी गाथाओ कहेवी, ते आवी रीते: ॥ अथ लूण उतारण गाथा ॥ ॥ उवहि पडिभग्ग पसरं, पयाहिणं मुणिवइ करेऊणं ॥ पडइ सलूण तणलाज्जियं च लूणं हु अवहंमी ॥१॥ दोहा ॥ पिरके विणु मुह जिणवरह, दीहर नयण सलण ॥ न्हावइ गुरु मत्थर भरिय, जलणी पइस्सइ लुण ॥ २ ॥ लूणउतारिह जिणवरह, तिन्नि पयाहिण देउ ॥ त्तड्यड सह करति यह, विज्जा विज्जा जलेण ॥ ३ ॥ गाथा ॥ जं जेणविज्ज विज्जइ, जलेण तं तह निहत्थह सस्सदं ॥ जिणरूप मत्थरेणुव, फुट्टइ लुण तडयडस्स ॥ ४ ॥ ॥ ए गाथाओ कहीने लूणने अग्निशरण करQ. पछी वली प्रथमनी पेठे लूण पाणी लइने मुखथी आवी रीतें गाथाओ कहेवीः--- For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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