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स्नात्र पूजा विधि.
॥ अथ कलश ढालवा समयनुं स्तवन ॥
॥ इंद्र कलशभर ढाले श्रीजिन पर ॥ इंद्र कलश० ॥ हाथो हाथ अमरगण आनत, खीर विमल जलधारे ॥ श्री जिनपर० ॥१॥ सुरवनिता मलि मंगल गावे, भावत भाव महारे ॥ श्री जिनपर० ॥ २ ॥ किन्नर अरु गंधर्व महोरग निरत नीर नित्य सारे ॥ श्री जिनपर० ॥३॥ देव इंदुभिधुनि गर्जत अति, शिर पर सुजस विथारे ॥ श्रीजिनपर ॥४॥ परमानंद जिनराज जगतपद, जगजीवन हितकारे ।। श्रीजिनपर० ॥ ५ ॥ इति कलश ढालवा समयनुं स्तवन ।।
॥पछी रकेबीमां लणपाणी लइने आरतिनी परे करवू अने ते वखतें मुखयकी गाथाओ कहेवी, ते आवी रीते:
॥ अथ लूण उतारण गाथा ॥
॥ उवहि पडिभग्ग पसरं, पयाहिणं मुणिवइ करेऊणं ॥ पडइ सलूण तणलाज्जियं च लूणं हु अवहंमी ॥१॥ दोहा ॥ पिरके विणु मुह जिणवरह, दीहर नयण सलण ॥ न्हावइ गुरु मत्थर भरिय, जलणी पइस्सइ लुण ॥ २ ॥ लूणउतारिह जिणवरह, तिन्नि पयाहिण देउ ॥ त्तड्यड सह करति यह, विज्जा विज्जा जलेण ॥ ३ ॥ गाथा ॥ जं जेणविज्ज विज्जइ, जलेण तं तह निहत्थह सस्सदं ॥ जिणरूप मत्थरेणुव, फुट्टइ लुण तडयडस्स ॥ ४ ॥ ॥ ए गाथाओ कहीने लूणने अग्निशरण करQ. पछी वली प्रथमनी पेठे लूण पाणी लइने मुखथी आवी रीतें गाथाओ कहेवीः---
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