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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८०६ श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विहरमानजिन स्तवनं. ॥ कलश ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ वंदो वंदो रे जिनवर विचरंता वंदो || कीर्त्तन स्तवन नमन अनुसरतां, पूर्वपाप निकंदो रे ॥ जिनवर विचरंता बंदो ॥ १ ॥ जंबू द्वीपें चार जिनेश्वर रे, धातकी आठ आणंदो || पुष्कर अर्धे आठ महामुनि, सेवे चोशठ इंदो रे ॥ जि० ॥ २ ॥ केवली गणधर साधु साधवी, श्रावक श्राविका वृंदो || जिनमुख धर्मअमृत अनुभवतां पामे मन आणंदो रे ॥ जि० ॥ ३ ॥ सिद्धाचल चौमास रहीने, गायो जिनगुण छंदो || जिनपति भक्ति मुगतिनो मारग, अनुपम शिवसुखकंदो रे ॥ जि० ॥ ४ ॥ खरतर गच्छ जिनचंद सूरिवर, पुण्यप्रधान मुणिंदो रे ॥ सुमति सागर साधु रंग सुवाचक, पीधो श्रुतमकरंदो रे || जि० ॥ ५ ॥ राजसार पाठक उपगारी, ज्ञानधर्म दिदो || दीपचंद सद्गुरु गुणवंता, पाठक धीर गयंदो रे ॥ जि० ॥ ६ ॥ देवचंद्र गणि आतम हेतें, गाया वीश जिणंदो || ऋद्धि वृद्धि सुखसंपत्ति प्रगटे, सुजस महोदय वृंदो रे || जि० ॥ ७ ॥ इति पंडितश्री देवचंद्रजीकृत विंशति विहरमान जिनस्तवनानि संपूर्णानि ॥ २६४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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