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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७८ दे० चो० ० AAAAAAAAAAPaarRIAAAAAA ज्ञान चारित्र तप बौर्य उल्लासथी, कर्म झीपी वसे मुक्तिधामें ॥ ता० ॥ ५ ॥ अर्थः-स्वामी जे श्रीअरिहंत, तेहना गुणने ओलखीने जे प्राणी श्रीअरिहंतने भजे, केतां सेवे, ते दर्शन केतां समकितरूप गुण पामे, ज्ञान दर्शननी निर्मलता पामे, ज्ञान ते यथार्थभासन, चारित्र ते स्वरूप रमण, तप ते तत्त्वएकाग्रता, वीर्य ते आत्मसामर्थ्य, तेहना उल्लासथी केतां उल्लसवेथी ज्ञानावरणादिकर्मने झीपीने वसे केतां रहे, मुक्ति केतां मोक्ष निरावरण संपूर्ण सिद्धतारूप धामें केतां थानके वसे ॥५॥ इति पंचम गाथार्थः ।। जगत वत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभु चरणने शरण वास्यो । तारजो वापजी बिरूद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो ता०॥६॥ अर्थः-जगत्रयवत्सल केतां जगत्रयना धर्महितकारी, एहवा महावीर श्रीचोवीशमा जिनवर, तेहने राणी केतां सांभलिने चित्त केतां मन ते प्रभुने चरणने झरणे वास्यो केतां वसाव्यो, ते माटे हे प्रभु परमेश्रर ! आहो आत्मा तो पलटीने सर्वसाधन करे, एरवी शशि वाली नयी मारे भद्रक भक्तिएं कहुं छु जे हे तात ! हे दो ! मुज दासने तुमें तारजो, तमारं तारकता विरुद राखवा माटे दास जे सेवक तेहनी सेवना भक्ति सायवी दुर्लभ छे, पण तमारे संयोगें, तरीये, एहीज नियमा आधार ले ।। ६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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