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त्रयोविंश श्री पार्श्वनाथजिन स्तवनं.
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मुनिराज,जिनकल्पी स्थविरकल्पी, परिहारबिसुद्धि, पडिमापडिवन, सूक्ष्मसंपरायी, उपशांतमोही, क्षीणमोही उपाध्याय, श्रुतधर, पूर्वधर, आचार्य, गणधर प्रमुख ते धर्मदेव, ते सर्व मध्ये चंद्रमा समान नायक, शासनना पति, मार्गदेशक, एहवा जे जिनवर तेहनी सेवना आज्ञा मानवारूप करतां थकां वाधे केतां वृद्धि पामे, साधकसंपदा, तथा सिद्धतारूप संपदा, तेहथी श्रीतीर्थकर तीर्थपतिनी सेवना ते परम प्रधान छे. द्रव्यथी वंदन नमनादिक अने भावथी गुणनुं बहुमान, आज्ञाप्रमाणता रूप सेवा करता अनंता सिद्ध थया, वली अनंता सिद्ध थशे, एहीज मोक्षसुखनो उपाय छे ॥७॥ इतिनेमिनाथजिनस्तवनं संपूर्ण ॥२२॥ ॥अथ त्रयोविंशश्रीपार्श्वनाथजिनस्तवन।
॥ कडखानी देशी॥ सहजगुण आगरो स्वामी सुखसागरो, ज्ञानवयरागर प्रभु सवायो ॥ शुद्धता एकता तीक्ष्णताभावथी, मोहरिपु जिति जय पडहवायो॥१॥
अर्थः--हवे वीसमा श्रीपार्श्वनाथ पुरषादानी परमेश्वरनी स्तुति करे छे. श्रीपार्श्वनाथ प्रभुजी कहेवा छे! सहज अकृत्रिम वस्तुना मूल धर्म ज्ञानानंदादिक तेहना आगर छे, अनंत आत्मगुण उपजाववाना धाम छे, स्वामी केतां स्वसंपदाना अधिपति छे, सुखना सागर छे, एटले जे अतींद्रिय,
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