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एकविंशति श्री नमिनाथजिन स्तवनं. ७५५ अर्थ:--मेहमां जेम वायु अनुकूल होय, तेम ए जिनभक्तिरूप मेहने विषे जिनगुणनी बहुमान सहित जे भावना भाववी तेहीज सुवायु वाय छे. ___ वर्षादमां त्रण रेखा युक्त इंद्रधनुष्य शोभाकारी होय, तेम इहां मन, वचन, कायरूप त्रण योग ते भक्तिने विषे एक मना थया, ते इंद्रधनुष्य छे.
जेम मेहमां गर्जना होय, तेम इहां निर्मल उज्ज्वल प्रभुना गुण तेमनी जे स्तवना ध्वनि शब्द तेहीज घन केतां मेहनी गर्जना जाणवी.
मेहथी ग्रीष्म उष्णकालना ताप टले, तेम इहां प्रभुसेवनथी तृष्णा पुद्गल सुखनी पीपासानो जे अंतरंग ताप होय, ते टले एटले आत्माने आत्मसुखनी ईहायें पर जे तृष्णारूप ग्रीष्म कालनो महाताप, ते मटे ।। २ ॥ शुभ लेश्यानि आलि, ते वग पंक्ति बनी रे ॥ते॥ श्रेणीसरोवर हंस, वसे शुचि गुण मुनि रे ॥३०॥ चौगति मारगबंध, भविक निज घर रह्या रे॥म०॥ चेतन समता संग, रंगमें ऊमह्या रे ॥९० ३॥ ___अर्थः-जेम मेहमां बगपंक्ति होय तेम इहां प्रशस्त शुभलेश्या जे पद्मशुक्ललेश्याना परिणाम एहवी लेश्याशुभनी उज्ज्वलता ते बगपंक्ति छे. __वर्षादमां हंसपंखी सरोवरे वसे, तेम जिनभक्तिना योगें हंसपक्षी जेहवा मुनिराज ते ध्यानारूढ थइ उपशम तथा क्षपकरूप श्रेणीय जइ वसे..
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