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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विंशतितम श्री मुनिसुव्रतजिन स्तवनं ७५१ विषे स्थासादि घटपर्यायनुं भवन व्ययपणुं नथी, ते माटे निपजे नहीं, हवे छठें आधारकारक कहे छे. स्वगुण जे ज्ञानादिक तेहनो शुद्ध आधार द्रव्यपदार्थ छे, एटले जीव, द्रव्या, ज्ञान, चारित्र, वीर्य, दान, लाभ, भोग, उपभोग, अव्यात्राध, अमूर्त्तता, अगुरुलघुता, अखंडता, निर्मलता, कर्तृता, पारिणामिकतादि मूलगुण, सर्वनो आधार जीवद्रव्य छे, एम धर्मास्तिकायादि सर्व द्रव्य पोतपोताना गुणना आधार छे, तेहथी धर्मास्तिकायने आधार नामें कारक कहो ? एम कोई पूछे, तेहने उत्तर. जे धर्मास्तिकायने गुणाधारीपणुं छे, परंतु कर्तृत्वपणुं नयी, ते माटे कारकपणुं न गवेष्यु, शुद्धतत्त्वने सत्तानो आधार छ, सत्ता ते आत्मानो मूलधर्म जे निरामय, तेहनो आधार सुतस्वछे ॥८॥ इति अष्टम गाथार्थः ॥ आतम आतम कर्त्ता कार्य सिद्धता रे, तसु साधन जिनराज ॥ प्रभु दीठे प्रभु दीठे कारज रुचि उपजे रे, प्रगटे आत्मसमाज ॥ ओ० ॥९॥ अर्थः--हवे उपनय कहे छे. आत्मा स्वरूपरुचि, भवो. द्विग्न, मोक्षामिलाषी, सम्यक्दर्शन गुण प्रगटे, जे स्वरूपर्नु कर्तीपणुं विरतिपणुं तत्त्व ध्यान, तत्त्वतन्मयतादिकने करवे कर्त्ता छे, एटले तत्त्वार्थी आत्मा, कर्ता, कार्यसिद्धता, सकलगुणप्रगटतापणुं, निःकर्मावस्था, तेहतुं साधन निमित्त कारण श्रीजिनराज सर्वज्ञ छे, जे कारणे प्रभु श्रीपरमात्मा दीठे यथार्थ भासन २०० For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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