________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दे० चो० बा०
कार्यना नवा नवा पर्यायर्नु प्रगट थवू, ते संप्रदान कहिये. एटले कार्यपदनुं भवन ते संप्रदान कहिये, अने पाछला कारण पर्यायनो व्यय केतां विनाश ते अपादान पांच, कारक कहिये, जीर्ण कारणपर्यायनो नाश नव्य कारणतानुं निपजवू, ते रीतें कार्यनी निष्पत्ति छे ।। ७ ।। इति सप्तम गाथार्थः ।।
भवन भवन व्यय विणु कारज नवि होवे रे, जिम दृषदें न घटत्व ॥ शुद्धाधारशुद्धाधार स्वगुणनो द्रव्य छ रे,
सत्ताधार सुतत्व ॥ ओ० ॥८॥ अर्थः-कोइ कहेशे जे संप्रदान तथा अपादान तेहमां शी कारणता छ ? तेहने उत्तर कहे छे.जे भवन केतां नवा पर्याय थवू, व्यय केतां पूर्वपर्यायनो नाश, ए थया विना कार्य निपजे नहीं, जेम माटीनो पिंड, ते पिंडपर्यायनो व्यय स्थासपर्यायनुं भवन तथा स्थासपर्यायनो व्यय, कोशपयांयतुं भवन, कोशपर्यायनो व्यय, कुशल पर्यायनुं भवन, कुशल पर्यायनो व्यय, कपाल पर्यायन भवन, कपाल पर्यायनो व्यय, घटपर्याय भवन, ए रीतें कार्यनी उत्पत्ति छ, तेम सिद्धताने नीपजाववाने विषे पण मिथ्यात्वपर्यायनो व्यय, सम्यक् पर्यायन्नु भवन. तेहना साधकपर्यायनो जीर्णनो व्यय, नवानो उत्पाद, ए रीतें कार्यनी निष्पत्ति छे, परंतु भवन तथा व्यय विना कार्य थाय नहीं, जेम दृषदनेविषे घटपणुं न थाय, यद्यपि कर्ता चक्रादिक व्यापार करे, तो पण दृषद ( पाषाणनो ) घट न थाय, श्यामाटे जे दृषद (पाषाणनो)
For Private And Personal Use Only