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दे० चो० बा०
खना अथीं छो तो जे सत्तागत अस्तिधर्म, तेहना रुचि अभिलाषी थायीने जे अस्तिस्वभावनी अनंतता तेहनेज ध्याता ध्यान करतां थकां सर्व देवमां चंद्रमासमान जे सिद्धपरमात्मपद ते लहे केतां पामे, अशरीरता, निर्मलानंदता, निःसंगतारूप परमानंद स्वाधीन आत्यंतिक अव्यावाथ सुख तेहनोज जेहमां जमाव छे, सवन केतां एकीपणं छे, एहवं पद श्री प्रभुनी सेवाथी पामे, तेमाटे तत्त्वस्वरूपी, अरूपी, ज्ञानस्वरूपी, एहवा श्रीकुंथुनाथना चरणनुं सेवन करो, हे भव्यजीवो ! एहीज परम सुखनो हेतु छे. ॥ १० ॥ इति कुंथुनाथ० ॥ ॥ अथ अष्टादश श्रीअरनाथजिनस्तवनं ॥
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॥ रामचंदके बाग चांपो मोरी रह्यो री ॥ ए देशी ॥ प्रणमो श्रीअरनाथ, शिवपुर साथ खरोरी ॥ त्रिभुवन जन आधार, भवनिस्तार करोरी ॥ १ ॥
अर्थ:-- हवे अढारमा श्रीअरनाथ जिननी स्तवना कारणता पणे करे छे. प्रणमो केतां वारंवार नमस्कार करो, श्रीअरनाथ स्वामीने, एहीज अमोही परमेश्वर वांदवा योग्य छे, शिव केतां निरुपद्रव जे सिद्धता, तेहीज उपमायें पुर केतां नगर तिहां पोहोचाडवाने खरो साथ छे, तेथी सार्थवाहनी उपमा श्री अरिहंतनेज छे, जे निःस्वार्थे भवअटवीमांथी पार करीने मोक्षनगरने विषे परमानंदपर्दे पहोचाडे एहवा कारणपणे श्री अरिहंतजी छे, वली त्रण भुवनना जनने आधार छे, मिथ्यात्व असंयम व्यथायें पीडितने आधार ओटंभारूप छे. वली चारगतिरूप भव
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