________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६८४
.
दे० चो० बा०
अर्थः--वली हे प्रभु ! तुमारी मुद्रा भावचिंतामणि रत्नसमान छे, एटले चिंतामणि रत्न ते इंद्रियसुखनो हेतु छे, ते तो द्रव्य चिंतामणि छे, अने श्रीवीतरागनी मूद्रा ते मोक्षसुखनी हेतु छे, माटे भाव चिंतामणि समान छे, आत्मानी पोतानी अनंतज्ञानादिक संपत्ति आपयाने भाव चिंतामणि रत्न समान छे, माटे एहिज शिव सुखनुं घर छे, तत्त्व जे वस्तुनो मूलधर्म छे, ते स्वरूप आलंबवाने तुमारी मूर्ति श्रेष्ठ कारण छे, ॥ २ इति ।। जाए हो प्रभु जाए आश्रव चाल, दोठे हो प्रभु दीठे संवर वधे जी ॥ रल हो प्रभु रत्नत्रयो गुणमाल,
अध्यातम हो प्रभु अध्यातम साधन सधे जो॥४ __ अर्थः--बली जाय केतां नाश पामे आश्रव केतां नवां कर्म लेवानी चाल नाश पामे, तथा प्रभुजीनी मूर्ति दीठे, संवरनी वृफि थाय, आत्मधर्मरमणरूपता वधे, वली रत्नत्रयी केतां सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप जे गुणनीमाला केतां निर्मल श्रेणि ते जेहमां छे, एहवो अध्यात्मआत्मस्वरूप, तेहy साधन केतां नीपजाववानो उपाय ते सधे केतां नीपजे ॥ ४ ॥ मीठी हो प्रभु मीठो सूरत तुझ, दोटो हो प्रभु दोठी रुचि बहुमानथी जी। तुझ गुण हो प्रभु तुझगुण भासन युक्त, से हो प्रभु सेवे तसु भव भय नथी जी ॥५॥
.
For Private And Personal Use Only