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चौ. बा
॥अथ त्रयोदश श्री विमलजिन स्तवनं ॥
॥ दासअरदास सीपरे करे जी ए देशी॥ विमल जिन विमलता ताहरी जी, अवर बीजे न कहाय ॥ लघु नदी जिम तिम लंघीयें जी, स्वयंभुरमण न तराय ॥ वि० ॥१॥
अर्थः-हवे श्री विमलनाथ प्रभुजीनी स्तुति कहे छे हे विमलजिन ! हे परमेश्वर ! ताहरी विमलता केतां तमारी निर्मलता केहेवी छे ? जे समस्तद्रव्यकर्म भावकर्मपरानुजायीतादि दोष रहित पणे छ एहवी निर्मलता ते अवर केतां बीजा कोइ छंद्रस्थ जीवे न कहाय केतां कहि शकाय नहीं, सिद्धस्वरूपस्य अनंतत्वात् वाचःक्रमपरिणतत्वात् आयुष्याल्पत्वात् , तेनवक्तुंनशक्यते केन इतिभाष्यवचनात, तेमाटे कहेवाय नहीं तेना उपर दृष्टांत कहे छे. जेम लघु नदी केतां नान्ही नदी तेने जेम तेम लंघीयें, केतां उतरि थे, पण असंख्याता कोडी जोजननो स्वयंभुरमण नामा समुद्र, ते कोइ पामर जनथी तों जाय नहीं, अने प्रभुना गुण तो स्वयंभू रमण समुद्रथी पण अनंतगुणा छे, ते सर्व वचने कह्यो जाय नहीं ॥१॥
सयल पुटवी गिरि जल तरु जी, कोइ तोले एक हथ्थ ॥
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