SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकादश श्री श्रेयांसजिन स्तवन. प्रभु दीठे मुझ सांभरे, परमातम पूर्णानंद रे॥ देवचंद्र जिनराजना, नित्य वंदो पय अरविंद रे । मु०॥९॥ अर्थः–ते माटे प्रभु दीठे एटले प्रभुनो स्थापनानिक्षेपो दीठे मुने सांभरे केतां स्मरणमां आवे, शु स्मरणमां आवे ? तो के परमात्मा, सिद्ध, भगवान् , अचल, असंगी, अभोगी, अयोगी, तेहनो पूर्ण अनंतपर्यायी त्रिकाल अविनाशी आनंद केतां गुणानंदादिक ते सांभरे, अने जे प्रभु स्वरूपाश्रित चेतना करवी, तेहज पोतानो आत्मा साधवानो परम उपाय छे, ते माटे देव जे निग्रंथादिक तेमां चंद्रमासमान जे जिनराज वीतराग श्री श्रेयांस परमेश्वर, तेना पदरूप अरविंद केतां कमल तेने नित्य वंदो, सदा प्रणमो, तथा स्तुतिकर्तानुं नाम पण देवचंद्र छे. ते पोताने पण कहे छे, जे श्री अरिहंतना चरण नित्य सेवो, अरिहंतसेवन तेहज संसार महासमुद्ग मोहावर्त्त अज्ञानांधकार मिथ्यात्वकर्दममग्न जीवने निस्तार पार करवानो पुष्ट उपाय छे, अरिहंत प्रतिमाने आलंबने अनंत जीव पूर्णानंदी थया, वली जे यथार्थ ओलखाणे पुद्गलाशंसा रहितपणे श्री अरिहंतनु सेवन करशे, ते परमसुख पामशे. एहज शरण त्राण आधार छे ॥ ९ ॥ इति एकादश श्री श्रेयांसजिन स्तवनं संपूर्ण ॥ ११ ॥ 84 १२३ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy