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दे० चो० बा. -~~~rrrrr-~-~~~ ~-~~-~
अर्थः--माटे कार्यसिद्धतानी निष्पत्ति ते कर्तीने हाथ छे, जेम दंडरूप कारण तेने जो कर्त्ता घटरूप कार्य करवाने प्रवतवे तो घटरूप कार्य करे, अने तेज दंड जो घटध्वंसने प्रवर्तावे तो घटध्वंस करे, ते माटे निमित्तनी प्रवृत्ति ते कर्ता जे कार्य करवाने प्रवर्त्तावे ते कार्य करे, माटे कार्यनी सिद्धि ते कर्त्ताने हाथ छे, पण कारणनिमित्तादिक तेनो संयोग मल्यां कार्य निपजे, ए पद्धति छे. माटे कोई संसारी आत्मा निज कहेतां पोतानुं आत्मिक पद परमानंद महोदयरूप तेहनो कारक कहेतां करवावंत तेने मोक्षना पुष्टकारण प्रभुजी श्री अरिहंत मल्यां थकां अवश्य निमत्तनो भोग थाय, एटले जे जीव संसारथी उभग्यो मोक्षाभिलाषी थयो, ते मोक्षना निमित्त श्री तीर्थकर देव पामीने, हर्षनो भोग आस्वादन पामे घणो विलास उपजे कार्योथी कारणनी पुष्टता वांछे, ए नीति छे इति ॥३॥ अजकुलगत केसरी लहे रे, निजपद सिंह निहाल॥ तिम प्रभुभक्ने भवि लहे रे, आतमशक्ति संभाल ॥
अ० ॥४॥ अर्थः---ते उपर दृशांत कहे छे. जेम कोई केसरी सिंह जन्मकालथी बकराना टोलानां बध्यों छे तो ते एम जाणे जे बकरानो टोलो तेज माहेर कुयुब छे, त्यां किवार बीजो सिंह आवे, तेवारें बकरा सर्व नासे, अने पोते पण नासे, एम करतां किवार सिंहनो आकार देखीने पोता सामु जुए, त्यारे ते पोतानो समान आकार जोईने विचारे जे एहनने मारूं तो तुल्यपणुं दीसे छे, ने हुं पण सिंह छु, पछी निर्भय थाय.
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