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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ॐ श्रीवर्द्धमानाय नमः ॥ श्रीगोतमाय नमः। ____ अथ श्रीदेवचंद्रजीकृत श्रीआदिनाथप्रमुख चोवीश तीर्थकरनी स्तवनागीत, चोवीशीनो बालावबोध सहित प्रारंभ करिये छैये. __ तत्र प्रथम पीठिका. ए संसारी जीव, देवतत्व, गुरुतत्त्व, धर्मतत्त्वनी भूलें अनादिनो संसारचक्रमांहे भमी रह्यो छे, शरीर इंद्रियसुख परिग्रह तेने हितकारी मान्या छे, अने पोतातुं आत्मस्वरूप, अनंतानंदमय विसारी मूक्युं छे, ते संभारतोज नथी, पण संज्ञी पंचेंद्रियपणुं पामीने, जो पोतानो शुद्धधर्म तथा शुद्ध धर्मनां कारण सेवे नहीं, तो आत्मा, स्यात् संपदा केम पामे ? तेमाटे उपकारी, जगत् हितकारी, श्रीवीतराग, परमात्मा, परमपुरुषोत्तम, एषा श्रीअरिहंतनी स्तवना तथा सेवना करवी, पण राग विना प्रभुनी सेवना थाय नहीं, ते कारणथी प्रथम श्रीरुषभदेवजीनी स्तवना करतां श्रीवीतराग उपर प्रीति करवी, ते रीत कहे छे. प्रथम धर्मनां चार आचरण कहां छे. १ प्रीति, २ भक्ति, ३ वचन, ४ असंग. तेमां प्रथम प्रौतिन लक्षण, षोडशकटीकाथी जाणवू. " यत्रानुष्ठातुः आदरप्रयत्नातिशयोस्ति प्रीतिश्च अभिरुचिरुपाहित उदयोयस्याः सा तथा भवति कर्तुः अनुष्टातुः शेषाणां कारण सेवेमाने, जोत संभारतो For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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