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आगमसार.
भमतां अनंता पुद्गल परावर्तन थया पण धर्मनी जोगवायी मली नही तो हवे मनुष्यभव, श्रावककुल, निरोग शरीर, पंचेंद्रिय प्रगट बुद्धि निर्मल, एटला संयोग मल्या वली श्री वीतरागनी वाणीना कहेनारा शुद्ध गुरुनी जोगवाइ पामीने अहो भव्यलोको ! तुमे धर्मने विषे विशेष उद्यम करजो, फरिथी एवी जोगवाइ मिलवी दुर्लभ छे माटे प्रमाद करशो नही. ए शरीर, धन, कुटुंब, आयुष्य सर्व चंचल छे. क्षण क्षण छीजे छे, माटे पांच समवाय कारण मल्या मोक्षरूप कार्य सिफ करवू ते पंचसमवायना नाम कहे छे. १ काल, २ स्वभाव, ३ नियति, ४ पूर्वकृत, ५ पुरुषकार. ए पांच समवाय माने ते समकीति छे एमां एक समवाय उथ्थापे तेहने मिथ्यात्वी कहियें एम सम्मति सूत्रमा कह्यो छे.
कालो सहा नियइ, पुवकयं पुरिसकारणे पंच ॥ समवाए सम्मत्तं, एगंते होइ मिच्छत्तं ॥१॥ अर्थः-काल लब्धि विना मोक्षरूप कार्य सिद्ध थाय नही एटले काल सर्वनुं कारण छे. जे काले जे कार्य थवानो होय ते कार्य ते कालें थाय ए काल समवाय अंगीकार करी कह्यो. इहां कोई पूछे जे अभव्य जीव मोक्षे केम जता नथी तेने उत्तर जे अभव्यने काल मले पण अभव्यमां स्वभाव नयी तेथी मोक्षे जाय नही केमके काल स्वभाव ए बे कारण जोइये. तेवारें फरि पूछ्युं जे भव्य जीवमां तो मोक्षे जवानो स्वभाव छे तो सर्व भव्य केम मोक्ष जता नयी तेने उत्तर जे नियत कहेतां निश्चय समकित गुण जागे तेवारें मोक्षपामे एटले काल स्वभाव नियत ए त्रण कारण मान्या ते वारे फरि पूछयुं जे
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