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विचार रत्नसार.
प्राप्त थइ पुत्रप्राप्ति फळ लहे, तेम निकटभवी सद्गुरु उपदेश योगपामी शुद्ध श्रद्धा लही, शुक्र चारित्र पाळी तत्काळ सिद्धि वरे; बीजा मध्यमभवि ते कोइ स्त्रीने पति समागमे बे चार वर्षे गर्भ रही पुत्रप्राप्ति थाय तेम मध्यमभवी थोडा संख्याता भवमां सिद्धि वरे, अने त्रीजा दुर्भवि ते जेम कोइ स्त्रीने घणे कष्टे घणे काळे पतियोगे गर्भ रही पुत्र प्राप्ति थाय तेम धर्मविराधक, पडवाइ बहुलकर्मी भारेकर्मीपणाने लीधे घणे काले, घणे कष्टे, घणे उपदेशे कर्मरखपावी सिद्धि वरे. २. अभव्यस्वरूप वांझणी स्त्री समान जाणवू, एटले जेम वंध्यादोषवंत स्त्रीने पतिनो समागम छतां पुत्र प्राप्ति थायज नहि, तेम अभव्यने मुक्तिगमन योग्यतास्वभाव न होवाथी गमे तेटली धर्म सामग्रीनी जोगवाइ मळे, तोपण शुम श्रद्धारूप खरेखलं संसार थकी उद्विग्नपणं, स्वपरओळखाणपणुं भेद ज्ञान न थाय पण पौद्गलिकआशीभावे चारित्रादिक पाळे, नवमा ग्रैवेयक सुधी जाय छे, पण तेनु सपळु फोक निष्फळ जाय छे, केम जे तेना ज्ञानक्रियादि मोक्षने अर्थे यथार्थ न होय तेथी. ३. तथा भव्याभव्य जीवने सत्ताए भव्य समान योग्यता धरावे छे, तोपण कोइ भवितव्यताज ज्ञानीए एवी दिठेली के तेनो स्वभाव व्यवहारराशिमां आववारूप न थाय, अत्र गाथा
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