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विचार रत्नसार.
तोपण आयुवर्जित सातकर्मनो स्थितिबंध नबसमगरे ऊणा एककोडाकोडीसागरोपमनो उत्कृष्ट बंध करे तथा उपशमश्रेणिथी पडीने मिथ्यात्वे जाय तेपण आयुवर्जित सातकर्मनी उत्कृष्टि स्थिति बांधे तो नव हजारसागरोपममें ऊंणी एककोडाकोडीसागरनो उत्कृष्टो
बंध करे इति भुवनभानुचरित्रे का छे. १९७ प्र०-जीव मार्गाभिमुखथइ समकित क्यारे पामे ? उ०-भवितव्यताने योगे अकामनिर्जराए कर्मखपावतां बे
पुद्गलपरावर्तकाल संसार रहे, त्यारे जीव आस्तिकपणे जिनमार्गसन्मुखी थाय, पछी त्यांथी संसारपरिभ्रमण करतो जीव उंचो आवे त्यारे ते मार्गपतित दोढपुद्गलपरावर्तसंसार रहे त्यारे जिनोक्त मार्गे रुचिवंत थाय; वळी कर्मयोगे त्यांथी पडी संसारभ्रमण करतो ज्यारे एकपुद्गलपरावर्तकालसंसार रहे, त्यारे जीव मार्गानुसारीपणुं पामे, त्यां भित्रादिकष्टि प्रगटे, न्यायसंपन्नविभवादि पांत्रीशगुणयुक्त थाय, त्यां जिनोक्त मार्गे चाली मिथ्यात्व मंद करतो करतो नदी गोळपाषाण न्याये घंचना घोळ परिणामे (एटले जेम नदी कांठेयी छुटो पड्यो एक पत्थर, ते जेम पाणीनी छोळमां अथडातो कुटातो पोतानी मेळे गोळ थइ जाए एम) ज्यारे जीव अर्धपुद्गलपरावर्तकाल मांहे आवे स्यारे आर्यदेश, संज्ञीपंचेन्द्रियमनुष्य उत्तम जैनकुल संपन्न थइ सद्गुरु उपदेशे के सहजस्वभावे कोइ निमित्तपामीने यथाप्रवृत्तिकरण लही उज्वल आत्म
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