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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८५६ विचार रत्नसार पशमे क्यांय पण न दिउं होय न सांभळ्युं होय छतां सहज स्वभावे पोतानी बुद्धिने जोरे समयसूचककार्य करी शके, ते अभयकुमार तथा रोहानी परे, २ वैनयिकी ते गुर्वादिकनो विनय बहुमान करतां मतिज्ञानावरणीयकर्मनो क्षयोपशम थइने बुद्धि उपजे ते नागार्जुनादिकनी परे, ३ कार्मणिकी ते विज्ञान, कळा, व्यापारादिनो अभ्यास करतां करतां जे बुद्धि प्रगटे ते, ४ पारिणामिकी ते वृद्ध अनुभवी पुरुषोनी संगते रहेवाथी तथा वयना परिपाके जे बुद्धि उत्पन्न धाय ते. १९२ प्र० - जातिस्मरणज्ञान अने विभंगज्ञान ते शामां समाय छे ? उ० - जातिस्मरणज्ञाननो मतिज्ञानमां समावेश थाय छे, अने विभंगज्ञाननो अवधिदर्शनमां समावेश थाय छे. १९३ प्र० - राशिगतसूर्य प्रश्नः उ०- मेषराशिनो सूर्य होय त्यारे कन्याराशिना सूर्यनी तथा चन्द्रनी चाल उत्तरभणी थाय, तथा तूलाराशि थकी मांडी मीनराशि सुधिना चन्दनी चाल दक्षिणदिशा तरफ थाय छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ प्र० - मिथ्यात्व अविरतिना हेतुनो प्रश्नः, 30 - जेहवो आत्मानो शुद्धोपयोग वस्तु आवरवाने जेम मिथ्यात्वबलवत्तर छे, तेम आत्माना परिणमन सुख निवारखाने अविरति बलवत्तर छे, अविरतिनो उदय टळवाथी आत्मानुं विरतिपरिणमन थाय छे ने तेथी सुखमय आत्मा स्वस्वरूपे परिणमे छे. १०० For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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