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विचार रत्नसार.
འཆབ་འབཀའའབཀབ་འགའགགའའའའའའའལ་ འབབཀབ་འསའབ इशान देवलोके, अने नवथी सोळ सुधीना प्रभुना पिता त्रीजा सनत्कुमारदेवलोके, अने सत्तरथी चोवीस सुधीना पिता चोथा महेंद्रदेवलोके प्राप्त थया छे. प्रथमना आठजिननी माताओ मोक्षे, नवथी सोळसुधीना जिननी माताओ त्रीजा सनत्कुमार देवलोके, अने शेष सत्तरथी चोवीस सुधीना आठ
जिननी माताओ चोथा महेंद्रदेवलोकने प्राप्त थएल छे. १८९ प्र०-श्रीजिनवाणीश्रवण, चारघातीकर्मना क्षयोपशमे केवी
रीते थाय ? उ०-१ अंतरायकर्म तथा दर्शनावरणीयकर्मना क्षयोप
शमे जिनवाणी सांभळवानी रुचि थाय, २ दर्शनावरणीय तथा ज्ञानावरणीयकर्मना क्षयोपशमे वाणी कान सांभळे तथा समजे, अने ३ मिथ्यात्वमोहनीयना क्षयोपशमे जिनवचन आत्मस्वरूप ज्ञानरूप
यथार्थसहहणामां आवे. १९० प्र०-श्री जिनवाणीनुं ध्यानरूप एकाग्रप्रणमन महाफल
दायक क्यारे थाय ? उ०-धर्मान्तरायना क्षयोपशमे संयमफलपामीने एकाग्रता
रूपध्यानमांहि सिद्धि वरे, तथा चारकर्म क्षायिक भावे थये थके केवळज्ञान अने केवळदर्शनादि
अनंतलक्ष्मी प्रगट करी महानंदपद पामे. १९१ प्र०-चारप्रकारनी बुद्धिनुं स्वरूप ढंकमां दृष्टांत सहित
समजावो.. ३०-१ औत्पातिकी बुद्धि ते मतिज्ञानावरणीयकर्मना क्षयो
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