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विचार रत्नसार.
गुण, दान गुण, लाभ गुण, भोग गुण, वीर्य गुण,
इत्यादि अनंतगुणभेदे भेदस्वरूपी कहीए. १७१ प्र०-सम्यक्त्वनां पर्यायनामो कहो.. उ०-आस्ता, श्रझा, प्रतीति, निर्धार, रूचि, अभिलाष,
बहुमान, अर्थिपणुं; तत्त्वइहा, गुण अद्भुतता, गुण गुणी आश्चर्यता, तद्विरहाकारकता, वस्तु प्रेम, तत्त्वार्थ
सदहणा, इत्यादि. १७२ प्र०-सम्यग्ज्ञाननां पर्यायनामो कहो. उ०-अवलोकन, भासन, परिच्छेदन, विवेचन, अमूर्ति
चेतनत्वं, सर्ववेत्ता, अप्रतिपातित्वं. निरावरणत्वं, ज्ञाय
कता, स्वरूपओळखाण, स्वरूपानुभव इत्यादि. १७३ प्र०-सम्यक्चारित्रनां पर्याय नामो कहो.
उ०-स्थिरता, तत्त्वरमण, निश्चयत्वानुभूति, परमक्षमा, परममार्दव, परमआर्जव, परमनिर्लोभता, अकामता, अनासंगता, सुख, स्वरूपविलास, ठरणता, संतोष, समता, स्वरूपस्वादता, स्वरूपानंद, सहजता, स्वा
धीनता, इत्यादि. १७४ प्र०-सम्यक्त्वनी दशरुचि कहो. उ०-१ निसर्ग रुचि, २ उपदेश रुचि, ३ ज्ञान रुचि,
४ सूत्र रुचि, ५ बीज रुचि, ६ अभिगम रुचि, ७ विस्तार रुचि, ८ क्रिया रुचि, ९ संक्षेप रुचि,
१० धर्म रुचि. १७५ १०-सम्यक्त्वनां पांच लक्षण कहो.
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