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विचार रत्नसार.
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मूळ बे मेद छे:---१ ज्ञानचेतना, २ अज्ञानचेतना, ते मध्ये अज्ञानचेतना बे प्रकारे छे ते १ कर्मचेतना, २ कर्मफळ चेतना, तेमां कर्मचेतना ते रागद्वेषादिने विषे जीवनुं परिणमन जाणवू, अने शुभाशुभ कर्मफळनुं वेदवू ते कर्मफळ चेतना जाणवी; ज्ञानचेतनानो कोइ भेद छे नहि, ते आत्माना शुशोपयोगरुप शुफ परिणति स्पर्शन ज्ञानरूप छे, ते सम्यगदृष्टि आत्माने होय छे, अने अज्ञानचेतना अशुद्धोपयोगना घरनी विभाविकपरिणतिरूप मोहितमिथ्यादृष्टि जीवने होय छे, ज्ञानचेतना जीवने प्रगटे त्यारे ते कर्मचेतना तथा कर्मफळ चेतनारुप
अज्ञानचेतना टळे. ५५ प्र०-त्रणे काळे जीव जे पापकर्मनो बंध करे छे तेना
निवारण हेतु कया ? उ०-गया काळना पापकर्म ते प्रतिक्रमणे मटे; अने वर्त
मानकाळना पापकर्म ते आलोयणे मटे; अने अना
गतकाळना पापकर्म पञ्चख्खाणे टळे. ५६ प्र०-चार प्रकारे व्यवहार छे ते कया १ उ०-१ अनुपचरित समूतव्यवहार ते अनंत ज्ञान,
अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत वीर्य आदे दइने आत्मानी अनंत गुणात्मक शुद्धतारूप जाणवो, २ उपचरित · सद्भूत व्यवहार ते क्षयोपशमिकज्ञानदर्शन, चारित्रादिरूप जाणवो, ३ अनुपचरित्त असमूत व्यवहार ते जीवमा अनादि कर्मसंबंध ए
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