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विचार रत्नसार.
ए सामान्यपणे रत्नत्रयीनुं वस्तुगते लक्षण जाणवु, विशेष प्रकारे तो, वस्तु अनंत धर्मात्मक सामान्य अने विशेष स्वभाववंत समकाळे छे, तेमां जे विशेषात्मक धर्म एटले वस्तुने जाति क्रियादि अनेक विशेषणोयुक्त यथार्थ जाणवी ते ज्ञानगुण; अने वस्तु सामान्यावबोध ते दर्शन गुणः तथा स्वपर वचण भेदज्ञानरूप जे विवेक, सदाचरण, अपि तु, स्वरूपाचरण ज ज्ञानना फलरूप विरति परिणति गुण छे ते चारित्र लक्षण जाणं.
५३ प्र० - धर्म सांभळवो, जाणवो, अने आदरखो ते केवी रीते ? उ०- वीतरागनी वाणी स्याद्वादरूपे छे तेने आत्मस्वरूप
प्ररूपणानी मुख्यताए, जे धर्मनो सद्गुरु महाराज उपदेश करे छे, ते धर्मने अत्यादर सहित सांभळवो, स्वसमय एटले स्वशास्त्रानुसार अने परसमय एटले परशास्त्राaata एम स्वपरज्ञान परीक्षापूर्वक जेम शुद्धाशुद्ध धर्मनो प्रकाश भासन थाय, तेम ते शुद्ध रत्नत्रयी आराधनरूप धर्मने विवेक बुद्धिए जाणवो, तथा जेने पोताना द्रव्यगुण पर्याय षोतानाज शुद्धात्म द्रव्य गुण पर्यायपरिणतिरूपे परिणम्या छे, तेनो प्ररूपेलो धर्म आदरवो इतिभाव
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५४ प्र० - चेतना एटले शुं ?
उ०- ज्ञान दर्शन स्वभावरूप आत्मलक्षण एटले सुखदुःखनं जे भान थवुं, चेतनुं एटले सुखे दुःखे जे चेते तेने चेतना कहिये ते जीवनुं लक्षण छे. हवे ते चेतनाना
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