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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मग्रन्थस्य टबार्थः n ~~ ~ ~ ~ अनुक्रमे बधो लोक मरणे स्पर्शे ते आधा पाछा प्रदेशे जे मरण थाये ते न गणीये, इम संपूर्ण लोक स्पर्श त्यारे क्षेत्रथी सूक्ष्म पुद्गल परावर्त थाय. तथा एहनो जघन्य अंतर २५६, आवळीनो उत्कृष्ट अंतर अनंतकालनो तथा उत्सर्पिणी अवसर्पिणीने प्रथम समये जन्म पाम्यो, तेहिज वळी किहांक मरण पाम्यो, इम जे क्षेत्रे जे प्रदेशमे मरण पाम्यो, इम अनुक्रम विना जे हरकोइ स्थानकनो प्रदेश स्पश्र्यो, तिम उत्सर्पिणी अवसप्पिणीना समय मरणे स्पश्र्ये तिवारे कालयी बादर पुद्गल परावर्त थाये. तेहज कोइ उत्सर्पिणी अवसर्पिणीना प्रथम समये मरे पछी जघन्ये वीस कोडाकोडी सागर जाय तिवारे वळी बीजा कालचक्रनो बीजो समय आवे तिवारे मरण पामे अथवा अनंतेकाले अनंतमा कालचक्रने बीजे समये मरण, वळी जघन्ये वीस कोडाकोडी सागर पछी अथवा अनंताकाल पछी चीजे समय मरण, इम अनुक्रमे मरण करतां उत्सर्पिणी अवसर्पिणीना समयो मरणे करी स्पर्शे अनुक्रमे, तिवारे कालथी मूक्ष्म पुद्गल परावर्त्तन थाये, इम रसबंधनां स्थानक जे मरणे करी जेम तेम स्पर्शे ते भावथी बादर पुद्गलपरावर्त्त थाये, तेहिज रसबंधना स्थानक अनुक्रमे, मरणे स्पर्शे सारे भावथी सूक्ष्म पुद्गल परावर्तन थाये. ते भाव पुद्गल परावर्त कोइ जीवने थयो नथी इम आठ मेद जाणवा. ॥८८॥ अप्परपयडिबंधी, उक्कडजोगी अ सन्निपजत्तो। कुणइ पएसुक्कोसं, जहन्नयं तस्स वच्चासे ॥ ८९॥ ____ अर्थ-जे जीव अप्पयर-अल्पतर थोडी प्रकृति बांधे, उकडयोगी-योगे उत्कृष्ट योगी हुवे अ कहेतां च शब्द संज्ञि 94 For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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