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७४४ कर्मग्रन्थस्य टबार्थः उरलाइ सत्तगेणं, एग जिओ मुअइ फुसिय सवअणु। जित्तिअ कालि सथूलो। दवे सुहुमो सगऽन्नयरा॥७॥
अर्थ-डुवे द्रव्य पुद्गल परावर्तननो मान कहे छे. उरलाइऔदारिकादिक सात वर्गणा, आहारक विना, ते एक विना ते एक जीव सर्व पुद्गल ए ७ सात वर्गणाए फुसीय-स्पर्शीने मुइय-मूक्या जे सर्व परमाणु पिण अनुक्रमे नहीं जिवारे जे फरसे ते तिवारे गणीये तेहनो जे काल लागे ते द्रव्ये बादर पुद्गल परावर्त्तन थाये. तथा सर्व परमाणु सगन्नयरा-सात वर्गणापणे अन्यतर एक एक वर्गणापणे फरसे ते विचें बीजी वगणापणे फरसे ते स्पर्शना गणवी नही, इम अनुक्रमें एक एक वर्गणापणे सर्व पुद्गल फरसी मुके तिवारे द्रव्यथी सूक्ष्म पुद्गल परावर्तन थाये. ॥ ८७ ॥ लोगपएसोसप्पिणि, समयाअणुभागबंधट्ठाणा य। जह तह कममरणेणं, पुट्ठाखित्ताइथूलियरा ॥८॥ ___ अर्थ-लोकप्रदेश सर्व स्पर्शे क्षेत्रपुद्गलपरावर्त, उत्सर्पिणी अवसप्पिणीना समय स्पर्शे ते काल पुद्गल परावर्त्त, अनुभाग बंधनां स्थानक स्पर्शे भावपुद्गलपरावर्त्त, ते जहतह-जेम तेम स्पर्श तो ए ३ तीने थूल-बादर पुद्गलपरावर्त्त, अने अनुक्रमे स्पर्शे तो सूक्ष्म थाये ते देखाडे छे. जे लोकना प्रदेशमा लोकना अंतप्रदेशे मरण पामे, इम जेम तेम आगल पाछल करीने बधो लोक मरणे करी स्पर्श तिवारें क्षेत्रथी थूल-बादर पुद्गलपरावर्तन थाये, तेहज जे लोकने अंत्यप्रदेशे मरण करी वळी ते प्रदेशथी लगते प्रदेशे मरण करे ते भव गणवो, इम
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