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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
७२३
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वीर्य वधे, अने वळी पइठिइ-प्रतिस्थितिए ( स्थितें) अध्यवसाय असंख्याता छे, ते अलोकमध्ये लोक जेहवा असंख्याता खंड कल्पीये तेहना प्रदेश जेटला एकस्थितिस्थानक स्थितिबंधना अध्यवसाय छे, ते ए सर्व जीवभेदें जाणज्यो. कषायना तरतमयोगें अध्यवसायना भेद जाणवा, ए अध्यवसाय अनंतजीवमां पण पामीये. अने कोइक वेळा असंख्याता अध्यवसाय जीव रहित पिण पामीये. हवे सातकर्मनी जघन्य स्थिति बांधे तेहना अध्यवसाय असंख्याता छे, अने एक समयाधिक बांधे तेहना पुंटली स्थितिना अध्यवसायथी कांइक अधिक जाणवा. इम तृतिय समयाधिकना अध्यवसाय अधिका इम वधारते २ उत्कृष्ट स्थितिस्थानकसीम अधिकाधिक कहेवा, आउखाकमना जघन्य स्थितिस्थानकथी समयाधिकनो जे स्थितिस्थानक तेहना अध्यवसाय असंख्यातगुणा कहेवा, सर्व वर्त्ततो आउखो बांधे पिण आउखानी स्थिति थोडी तिणे स्थितिस्थानक थोडां अने कषायस्थानकने वहेंचतां असंख्यातगुणा आवे, इम सात कर्मने पण स्थितिस्थानके करी कषायस्थानकनो अल्प बहुत्व कहेवो, हवे जे प्रकृति जेटला काल अबंध रहे ते प्रकृतिनो अबंधकाल कहे छे. तिहां ४७ प्रकृति तो ध्रुवबंधि छे ते निरंतर बंधाये छे, तेथी बीजानी भावना करीये छे.॥५५॥ तिरिनिरय ति जोयाणं, नरभव जुअस चउपल्ल तेसह। थावर चउइगविगलाय-वेसुपणसीइ सयमयरा ५६ ___अर्थ-तिहां तिथंच ३, नरक ३, उद्योतनामकर्म ए ७ सात प्रकृतिनो उत्कृष्ट मनुष्यभवयुक्त पल्योपम च्यार अने एकसो तेसठ सागरोपम पर्यंत बांधे नहीं, तिहां भावना-कोइ
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