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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणो २८. ए रीते स्थिति स्थानकनी अल्पबहुत्व २८ बोलनो जाणवो, वीर्यनी वृद्धिए स्थितिनी तीव्रमंदताना भेद पडे ते इहां लेज्यो. अपर्याप्ताथी इअर-पर्याप्तानां स्थितिस्थानक असंख्यातगुण छे, इहां जीव भेद एके स्थिति जघन्य मिथ्यात्वनी एकसागर पल्यने असंख्यातमे भागें ऊंणी बांधे, पिण कोइक तीव्र बांधे, कोइक जीव मंद तथा मंदतर रीतें एक स्थितिस्थानकमें ते स्थिति बांधवाना अध्यवसाय स्थानक असंख्यात थाये. एहवा एक जीवभेद सूक्ष्म अपर्याप्ताने बांधवानां अध्यवसाय स्थानक असंख्यात छे तेहथी सूक्ष्मपर्याप्ताना बंधाध्यवसाय संख्यातगुणा छे, तेथी बादर अपर्याप्ताना संख्यातगुणा छे, तेथी बेइन्द्रि अपर्याप्ताना बंधाध्यवसाय असंख्यातगुणा छे, तेथी बेन्द्रिपर्याप्ताना बंधाव्यवसाय संख्यातगुणा छे. इम १४ जीवभेदें कहेतां पण एटलो भेद जे बेइन्द्रि अपर्याप्तानां असंख्यातगुणांज. वसपणानो वीर्य तेहने वाध्यो ते माटे. तथा इहां स्थिति अपेक्षाए पहेला (?) ॥५४॥ पइ खण मसंखगुणविरिय, अपजपइठिइमसंखलोग
समा। अज्झवसाया अहिया, सत्तसु आउसुअसंखगुणा ५५॥ . अर्थ--हवे जीवने क्षयोपशमी वीर्य जे उपजवाने प्रथम समये छे ते असंख्यातो छे. ते पछी पइग्वण-प्रतिसमये एटले समय समयमे असंख्यातगुणो वीर्य वधे. पण अपर्यातावस्थासीम इम वीर्यवृद्धि जाणवी. एटले पेहेला समयथी बीजे समये असंख्यातगुणो वीर्य वधे, वीजे समये असंख्यातगुणो
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