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कर्मग्रन्यस्य टबार्थः
तेहथी बादर पर्याप्तो उत्कृष्टबंधक स्थिति अधिकी बावे. एकेन्द्रीपणामे एज उत्कृष्टबंधक छे ९. ॥४९॥ लहु बिअपज अपजे, अपज्जेयर बिअगुरु हिगो एवं। तिचउ असन्निसु नवरं, संखगुणो बिअअमणपत्ते ५०
अर्थ--लहु-जघन्यबंधक बेन्द्री पर्याप्तो संख्यातगुणी बांधे १० तेहथी बेन्द्री अपर्याप्तो जघन्यबंधक अधिकी बांधे, ११ तेहथी बेन्द्री अपर्याप्तो उत्कृष्टबंधक अधिकी बांधे. १२ तेहथी बेन्द्री पर्याप्तो उत्कृष्टबंधक अधिकी बांधे. १३ इहां एकेन्द्रीयी बेन्द्रीने २५ गुणो बंध, ते माटे पेहेले बोले संख्यातगुणो कह्या पछी ते पल्यना असंख्यातमे भागे वृद्धि छे, ते माटे आधिकी बांधे. एवं-ए रीते च्यार ४ बोल कहेवा. तिहां १४ मे बोले तेन्द्री पर्याप्तो जघन्यबंधक स्थिति अधिकी बांधे, तेहथी १५ मे बोले तेन्द्री अपर्याप्तो जघन्यबंधक स्थिति अधिकी बांधे, तेहथी तेन्द्री अपर्याप्तो उत्कृष्टबंधक अधिकी बांधे. १६ तेहथी तेन्द्री अपर्याप्तो उत्कृष्टबंधक ते अधिकी बांधे. १७ तेहथी चौरेन्द्री पर्याप्तो जवन्यबंधक अधिकी बांधे. १८ तेहथी चोरेन्द्री अपर्याप्तो जवन्यबंधक अधिकी बांधे, १९ तेहथी चोरेन्द्री अपर्याप्तो उत्कृष्टबंधक अधिकी बांधे. २० तेहथी चोरेन्द्री पर्याप्तो उत्कृष्टबंधक अधिकी बांधे, २१ तेहथी असंज्ञि पंचेन्द्री पर्याप्तो जघन्य बे० संख्यात गुणबंधक छे. ते २२, ए हजारगुणी बांधे ते पोरेन्द्रीथी नवगुणी साधिक थइ छ ते माटे तेहथी असंशि पंचेन्द्री अपर्याप्तो जघन्यबंधक अधिकी बांधे. २३ तेहथी असंशि पंचेन्द्री अपर्याप्तो उत्कृष्टबंधक अधिकी बांधे. २४ तेहथी असंज्ञि पंचेन्द्री पर्याप्तो उत्कृष्टी
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