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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
उत्कृष्टोबंध सादि अब्रुव जे हुवे परं ए अर्थ इहां लीधो नथी. (टबामां. लीधो नथी एम छे ) इहां तो जघन्य बंधकयी बीजो बंध ते सर्व अजवन्यमें गवेख्यो छे, अने प्रथम अर्थ करीये तो पिण अनादि सूक्ष्मनिगोदीया जीवने सदा अजवन्य बंध छे. जे जघन्य बंध तो बादर एकेन्द्रीने छ, अथवा गुणाधिकने छे ते माटे ए भांगे ४, भेद भासे छे, सातकर्म ( आउखा विना ) अजघन्य स्थिति बांधेतो सादि एक १, अनादि २, ध्रुव ३, अध्रुव ४, ए च्यारभेदे बांधे. जे छ कर्मनो जघन्य बंध १०, मे गुणठाणे, मोहनी कर्मनो जघन्य बंध नवमे गुणठाणे अंत्य अध्यवसाय क्षपकश्रेणिने, अने उपशमश्रेणि ते क्षपकथी बमणी स्थितिबांधे, ते माटे अजघन्य बंधक छे, तेहने इग्यारमे आव्ये अबंध थयो, ते अब्रुव, पाछो पडी वळी बांधे ते सादि, ए गुणठाणे आव्यो नथी तेहने अनादि, अभव्यने ध्रुव भव्यने अध्रुव ए रीते जाणज्यो १, सर्व जीवने अजघन्य बंध ते ए गुणठाणे चढ्या पड्याने सादी, चडस्ये तेहने अध्रुव, तथा अभव्यने अनादि ध्रुव छे, तेथी एज सातकर्म उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जवन्य ए तीन मांगे सादि अध्रुव बंध छे, ए ३, ना बंधनो काल अल्प छे, तथा आउखो कर्म उत्कृष्ट जघन्य, अजवन्य, ए ४, च्यारे भांगे स्थिति बांचे तो सादि अध्रुवकालज बांधे, जे कारणे भवमें आयु एकवार तथा अंतमुहूर्त सीम बंधाय ते माटे बे भेदज छे, शेष तीन उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट जघन्य १, अनुत्कृष्टः भांगे बांध तो सादि अवकालसीम जे कारणे जघन्य बनो एक दम छ, यो : समयकाल छे, अत्कृष्ट ते उत्कृष्ट पछी थाय त भाट सादि अध्रुव छे, उत्कृष्टथी एक समये ऊणबांधे ते अनुत्कृष्ट बंध,
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