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आगमसार.
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पांचमी अधो छष्ठी ऊर्ध्व ए छ दिशिना क्षेत्रनो मानकरी मो. कलो राखे ते व्यवहारथी दिशिपरिमाण कहियें अने चारगतिमां भटकवू ते कर्मनुं फल छे एम जाणी तेथी उदासीपणो अने सिफ अवस्था(नो) शुं उपादेयपणो वे निश्चय दिशिपरिमाण व्रत कहिये.
७ भोगोपभोगपरिमाण व्रत कहे छे. जे एकवार भोगवq ते भोग अने जे वारंवार भोगवq ते. उपभोग तेनो परिमाण करे ते व्यवहार भोगोपभोगवत कहिये, अने जे व्यवहारन कर्मनो कर्त्ता भोक्ता जीव छे अने निश्चयनये तो कर्मनो कर्ता कर्म छे. आत्मा अनादिनो परभाव भोगी थयो छे तेथी परभावग्राहक अने परभावरक्षक थयो एटले आत्मानी ज्ञायकता, ग्राहकता, भोग्यता, रक्षकता बीगडे कर्ता पणो बीगड्यो तेवारें परभाव कर्ता थयो ते पण परभाव रंगीपणे आठ कर्मनो कर्ता थयो छे पण सत्तायें तो स्वभावनो कर्ता छे पण उपकरण अवराणा तेथी स्वकार्य करी शकतो नथी. विभावने करे छे अज्ञानपणे जीवनो उपयोग मल्यो छे पण न्यारो छे. पोताना ज्ञानादिक गुणनो कर्ता मोक्ता छे एडवो स्वरूपानुयायी परिणाम ते निश्चयभोगोपभोगवत लाग जाणवो.
८ अनर्थदण्डविस्मणव्रत कहे छे. काम विना जीवनो वध करवो. पारका वास्ते आरंभ प्रमुख करकानी आज्ञा प्रमुखे आपवी ते व्यवहार अनर्थदंड अने शुभाशुभ कर्म ते मिथ्यात्व अविरति कषाय योगथी बंधाय छे. तेने जीव आपणा करी जाणे ए. निश्चययी अनर्थदंड.
९ सामायिक व्रत कहे छे. जे मन वचन कायाना आरंभ ढालीने तेने निसरंभपणे. वावे ते व्यवहार सामायिक जाणवो.
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