________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आममसार
अने कर्मनी वांछा कोण करे छे ? तेने उत्तर जे पुण्यने भेलो लेवा योग्य कहे छे ते जीव कर्मनी वांछा करे छे. जे पुण्यना ४२ भेद छे ते चार कर्मनी शुभ प्रकृति छे एटळे जे व्यवहार अदत्तादान तो नथी लेता पण अंतरंग पुण्यादिकनी वांछा छे तेने निश्चय अदत्तादान लागे छे.
४ मैथुन विरमणवत कहे छे. जे पुरुष परस्त्रीनो परिहार करे तथा जे स्त्री परपुरुषनो परिहार करे. इहां साधुने स्त्रीनो सर्वथा त्याग छे अने गृहस्थने परणेली स्त्री मोकली छे. परस्त्रीनो पच्चखाण छे ते व्यवहारथी मैथुन- विरमण कहियें अने जे विषयना अभिलाषनुं तथा ममता तृष्णानो त्याग परभाव वर्णादिक परद्रव्यना स्वामित्वादिक तेनो अभोगीपणो आत्मा स्वगुण ज्ञानादिकनो भोगी छे अने ए पुद्गलखंध ते अनंता जीवनी एंठ छे तेने केम भोगवे ए रीते त्याग निश्चयथी मैथुन विरमण कहिये. जेणे बाह्य विषय छांड्यो छे अने अंतरंग लालच छुटी नथी तो तेहने ते मैथुनना कर्म लागे छे.
५ परिग्रह परिमाणवत कहे छे. परिग्रह धन-धान्य-दासदासी-चौपद-जमीन-वस्त्र आभरणनो त्याग तेमां साधुने तो सर्वथा परिग्रहनो साग छे तथा श्रावकने इच्छा परिमाण छे जेटली इच्छा होय तेटलो परिग्रह मोकलो राखे. बीजानी विरति करे ए व्यवहारथी कह्यो अने जे कर्म रागद्वेष अज्ञान द्रव्य ज्ञानावरणीय प्रमुख आठ कर्म अने शरीर इन्द्रियनो परिहार एटले कर्मने पर जाणी छांडवो ते निश्चयथी परिग्रहनो त्याग एटले परवस्तुनी मूर्छा छांडवी जेणे मूर्छा छोडी तेणे परिग्रह छोड्योज छे एम जाणवू..
.६ दिशिपरिमाण व्रत कहे छे. तिहां तिरछि चार दिशी
For Private And Personal Use Only