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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
अनाहारकमार्गणामे संज्ञी अपर्याप्तो १, पर्याप्तो १, सूक्ष्म अपर्याप्तो १, बेन्द्री अपर्याप्तो १, तेन्द्री अपर्याप्तो १, चौरेन्द्री अपर्याप्तो १, असंज्ञी अपर्याप्तो १, बादर अपर्याप्तो १, ए आठ ८ जीवस्थानक छे. ए आठमेथी सूक्ष्म अपर्याप्तो काढीजे; तिवारे सास्वादने ७ सात जीवस्थानक छे. बादर अपर्याप्तो १, बेन्द्री अपर्याप्तो १, तेन्द्री अपर्याप्तो १ चौरेन्द्री अपर्याप्तो १, असंज्ञी अपर्याप्तो १, संज्ञी अपर्याप्तो १, संज्ञी पर्याप्तो १. ए सात छे. एटले ६२ मार्गणाए जीव भेद कह्या. ॥२१॥ ___ हवे बासठ मार्गणाए गुणठाणा कहे छे. पणतिरिचउसुरनरए, नरसन्निपणिंदिभवतसिसके। इगविगलभूदगवणे, दुदुएगं गइतस अभवे ॥२२॥ ____ अर्थ-तिर्यंचमें पेहेलां पांच गुणठाणा छे. सर्व देवता सर्व नारकीमां च्यार गुणठाणा छे. मनुष्यगतिमें १, संज्ञी मार्गणामें १, पंचेंद्रीमे १, भव्यमार्गणामे १, त्रसकायमे ए पांच मार्गणामे सर्व गुणठाणा छ १४ गुणठाणा छे. एकेन्द्रिय मार्गणामे, बेंद्रियमे, तेंद्रियमे, चौरेन्द्रियमे १, पृथ्वीकायमे १, अप्कायमे १, वनस्पतिकायमे १. ए सात ७ मार्गणामे मिथ्यात्व १, सास्वादन २. ए बे गुणठाणा छे. गतिवस ते वेउकाय १, वायुकायमें १, अभव्यमे १. ए त्रणमे एक १ मिथ्यात्व गुणठाणो छे. ॥ २२ ॥ वेअतिकसाय नवदस,लोभेचउ अजइदुति अन्नाणतिगे बारस अचक्खुचक्खुसु, पढमा अहक्खाइ चरमचऊ२३
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