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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मग्रन्थस्य टबार्थः अनाहारकमार्गणामे संज्ञी अपर्याप्तो १, पर्याप्तो १, सूक्ष्म अपर्याप्तो १, बेन्द्री अपर्याप्तो १, तेन्द्री अपर्याप्तो १, चौरेन्द्री अपर्याप्तो १, असंज्ञी अपर्याप्तो १, बादर अपर्याप्तो १, ए आठ ८ जीवस्थानक छे. ए आठमेथी सूक्ष्म अपर्याप्तो काढीजे; तिवारे सास्वादने ७ सात जीवस्थानक छे. बादर अपर्याप्तो १, बेन्द्री अपर्याप्तो १, तेन्द्री अपर्याप्तो १ चौरेन्द्री अपर्याप्तो १, असंज्ञी अपर्याप्तो १, संज्ञी अपर्याप्तो १, संज्ञी पर्याप्तो १. ए सात छे. एटले ६२ मार्गणाए जीव भेद कह्या. ॥२१॥ ___ हवे बासठ मार्गणाए गुणठाणा कहे छे. पणतिरिचउसुरनरए, नरसन्निपणिंदिभवतसिसके। इगविगलभूदगवणे, दुदुएगं गइतस अभवे ॥२२॥ ____ अर्थ-तिर्यंचमें पेहेलां पांच गुणठाणा छे. सर्व देवता सर्व नारकीमां च्यार गुणठाणा छे. मनुष्यगतिमें १, संज्ञी मार्गणामें १, पंचेंद्रीमे १, भव्यमार्गणामे १, त्रसकायमे ए पांच मार्गणामे सर्व गुणठाणा छ १४ गुणठाणा छे. एकेन्द्रिय मार्गणामे, बेंद्रियमे, तेंद्रियमे, चौरेन्द्रियमे १, पृथ्वीकायमे १, अप्कायमे १, वनस्पतिकायमे १. ए सात ७ मार्गणामे मिथ्यात्व १, सास्वादन २. ए बे गुणठाणा छे. गतिवस ते वेउकाय १, वायुकायमें १, अभव्यमे १. ए त्रणमे एक १ मिथ्यात्व गुणठाणो छे. ॥ २२ ॥ वेअतिकसाय नवदस,लोभेचउ अजइदुति अन्नाणतिगे बारस अचक्खुचक्खुसु, पढमा अहक्खाइ चरमचऊ२३ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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