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आगमसार.
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छे अने अतीतपणानो उपजको छे काल पणे ध्रुव छे. ए स्थूल थकी उत्पादक व्यय ध्रुवपणो कह्यो अने वस्तुगते मूलपणे ज्ञेयने पलटवे ज्ञाननो पण ते भासनपणे परिणमवो थाय ते पूर्व पर्यायना भासननो व्यय अने अभिनव ज्ञेयना पर्याय भासननो उत्पाद तथा ज्ञानपणानो ध्रुव ए रीते सर्व गुणना धर्मनी प्रवृत्तिरूप पर्यायनो उत्पाद व्यय श्रीसिमभगवन्तमां पण थइ रह्यो छे. एमज धर्मास्तिकायना प्रदेशे जे क्षेत्र गत असंख्यात पुद्गल तथा जीवने पहेले समय चलण सहायीपणो परिणमतो हतो अने बीजे समय अनन्त परमाणु तथा अनन्ता जीव प्रदेशने चलन सहायी थयो तेबारे असंख्याता चलन सहायनो व्यय अने अनंता चलन सहायनो उपजवो अने गुणपणे ध्रुव एम धर्मद्रव्य मध्ये उत्पाद व्यय थइ रह्यो छे. तेमज अधर्मादिक द्रव्यने विषे पण भाव. तथा वली कार्य कारणपणे उत्पाद व्यय तथा अगुरुलघुना चलननो उत्पाद व्यय पंचास्तिकायने विषे कहेवू. तथा कालद्रव्य ते उपचार छे तेनुं स्वरूप सर्व उपचारथीज कहेवू. ए रीते सर्व द्रव्यमां सत्पणो छे. जो अगुरुलघुनो भेद न थाय तो पछे प्रदेशनो माहोमांहे भेद केवो थाय ते माटे अगुरुलघुनो भेद सर्वमा छे अने जेनो उत्पाद व्यय रूप सत्पणो एक छे ते द्रव्य एक छे. तथा जेनो उत्पाद व्यय सत् पणो जूदो ते द्रव्य पण जूदो छे एटलें सत् केहतां सत्त्वपणो कह्यो.
६ अंगुरुलघुपणो कहे छे. जे द्रव्यनो अगुरुलघु पर्याय छे ते छ प्रकारनी हानि वृद्धि करे छे. तेमा छ प्रकारनी वृद्धि छे. १ अनन्त भागवृद्धि, २ असंख्यातभागवृद्धि, ३ संख्यातभागवृद्धि, ४ संख्यातगुणवृद्धि, ५ असंख्यातगुणवृद्धि, ६ अनंत
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