________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कर्मग्रन्थस्य टवार्थः
AAWARANvrrena
५६१ बावन्न
एसा पयडितिगुणा, वेयणीआहारजुअलथीणतिगं। मणुआउ पमत्ता, अजोगिअणुदीरगो भयवं ॥२४॥
उदीरणा सम्मत्ता॥ अर्थ-ए तीन प्रकृति ऊणी कीजे ते प्रथम सातावेदनी १, असातावेदनी २, मनुष्यनो आउखो १. ए तीननो फेर छे. वेदनी २, आहारक २, थीमाद्रीतीन, मनुष्यनो आउखो १, ए आठ काढीजे. उदयमे पांच नोकळे छे उदीरणमे सात गुणठाणे ८ आठ काढीजे; तिवारे तिहत्तर ७३ उदीरणा छे. आठमे गुणहत्तर ६९ छे. नवमे तेसठि ६३ उदीरणा छे. दसमे सत्तावन छे. इग्यारमे छप्पन्न ५६ छे. बारमे पेहेले भागे चोपन ५४ उदीरणा छे अने बीजे भागे बावन्न ५२ उदीरणा छे. तेरमे गुणठाणे च्याळीस ४० उदीरणा छे. अने चौदमे अजोगी गुणठाणे उदीरणा नथी अनुदीरक छे. सिद्ध थाय ते अकर्मा छे. एटले चादे गुणठाणे उदीरणा पूरी थइ. ॥२४॥ सत्ता कम्माण डिइ, बंधाइअलद्धअत्तलाभाणं । संते अडयालसयंजाउवसमुविजिणुवीयतईए॥२५॥ ____अर्थ-हवे चौदे गुणठाणे सत्ता कहे छे-तिहां सत्तानो अर्थ कहे छे-जे कर्मनी स्थिति बांध्या पछी उदय विना अथवा उदय सहित जे जीवशुं लागा रहे; जिम घरनी नीमी तिम जे कर्म ते सत्ता कहीजे, जे बंधादिकपणे आत्माथी लोलीभाव पामे ते सत्ता जाणवी. हवे उपशमश्रेणिनी सत्ता कहै छे-जे जीव उपशम समकीती, उपशम चारित्री; तेहनी सत्तामें कांइ प्रकृति घटे नहीं, तेहने उपशम ११ इग्यारमे
बदमे अ
For Private And Personal Use Only