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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
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पछै बीय चोकडीबले तिय चोकडी, उपशम्यां प्रकृति इम ता
सुपरह झडी: २
पछै हास्यादि छ उपशमै तेहने, प्रथम द्वय वेदने तेह मुनिवर व, पछे उदयागत वेद तस उपशमैः उपशमै नवमगुण संज्वलत्रिक तिहां, दशम गुण
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हम पिण लोभ उपशमै जिहां. ३ चढे इग्यारमे थान निज ज्ञानथी, थाय उपशांत जिन शुक्लनिज ध्यानथी, चरण अहक्खाय गुण पाय वसि कलनै, के मरे के पडे मोहने झाल. ४ जै मेरे ते टिकै आय समकितगुणे, एग अवतार सव्व सिद्धे धुणे, जे पडे ते टिके सग छग पंचमे, कोय चउथे निये होइ पहिले रमे. ५ भाव पंचे हवे शुक्ल पहिलो स्मरे, च्यारस सहु कालने इकभवे दो करे; सर्वश्रुतिजाण मुनि शांत मुनि सेवरी, ध्यान ध्यावे तिको आत्मगुण आदरी. ६ ध्यान सवितर्कथी जीप कषायने, ध्यान एकत्वसवितर्क गुण ध्यायने; चित्त निर्मल करी ध्यान सुपृथक्त्वथी, ध्यान एकत्व ध्यावे निज सच्चयी. शुक्ल बीय पाय ध्यावे अछे क्षायकी, निरमल केवलज्ञाननी जसु वकी; एक निज आतमा त्रिगुणनी एकता, व्यान ध्यातातणी एकता थिरता. ८ द्रव्य पर्याय एकत्वथी जे धेरै, निश्चल द्रव्य एकत्वथी जे धरे; शुक्ल एकत्वता ध्यान अभ्यासथी, पामे केवल कर्मना नाशथी. ९ श्रेणि आरोहिने क्षपक कोई मुनि, करे अपूरवपणे गुण कर्मनी; कोडि थिति घात करि महूरत थिति करे, छेदि अनंतर सभाग अंतिम वरे. १०
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