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ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
ते हवे नाशाविवर पुरि उष्ण पीले रंग जे, अति स्वस्थ हलूयो अष्ट अंगुल हृदय नासा संग जे; अति शीघ्र शीतल श्वेतवरणे वरुण वायु वहे सदा, अनुभवे पवन विहार जायक द्वादश अंगुलचर मुदा. ३ वहे तीछो रे छ अंगुल रंग श्याम ए, शीत उन्होरे फरुस पवन पुर धाम ए; चोरंगुल रे अर्द्धवृत्त नवदवसमो, अति उहोरे अग्नि तत्त्वथी मन दमो; थिर कार्य पार्थिव तत्व दाप्यो वरुण उत्तम कामने, चल मलिन काजे वायु वसिक जिनवह्नि तत्व सुधामने गज तुरग रामा राज्य धन शुभ लाभ मूतत्त्व उपदिसे, स्त्री राज्य धन सुष सुजन अभिमत सिद्ध वरुण समादिसे.४ भवपीडा रे शोकविघ्नपरंपरा, इम दाषे रे वह्नि तत्त्व दुषकंदरा; भय कलिकर रे वैरमणदायक अछे, वायुतत्त्वे रे सिम कार्य पण क्षय गछे; क्षय गछे षप्रवेशकाले तव चारे सुषकरू, से चलणवे अहित दुषकर तत्त्व च्यारे भयधरू; ते पेसता रवि सोम नाडी सुष कारण जाणिज्यो, जी नीकले द्धय नाडी सेती अछे दुषनी षाण तो. यामनाडे रे तत्त्वमूमि जल सुष मुणे, नीसरता रे आग्नि पवन रविथी हरणे; चोमंडल रे गमनागमन पवनने, तसु दाबूं रे भलो बूरो फल जन्नने
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