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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. RANAVA.A किहां पवन विश्राम छे, नाडी संक्रम केथि; कुण मंडल गति पवननी, सो हिव कहीई एथि. ढाल-प्रभु प्रणमुंरे पास जिणेसर थंभणो. एहनी ॥ मन थिर करी रे प्राणायाम अभ्यासीये, जिणपरतक्ष रे प्राणायाम प्रकासीये; प्राणायाममे रे मंडल वायु तपे करे, तसु चित्ते रे ध्यानसिद्धि अति विस्तरे; विस्तरे नासा विवरमांहे रच्या चारे मंडला, जूजूया लक्षण लक्षभेदे कह्या पवनसु मंगला; ते च्यार मंडल अति हि दुरगम जासु शक्ति अपार छे, स्वसंवेदनथकी जाणे सहु जगमें सार छे. हां सहू० १ तिहां आये रे पार्थिव बीय वरुण अछे, तीय मारुत रे चोथो वह्नि कह्यो पछे; धर मंडल रे भूमि बीज प्रभ हेमनी, वज्रलांछन रे चोकूणक धर षेमनी; ते मनी धर अरध चंद्राकार वारुणमंडलो, चंद्राभ वारुण वरुण मंडित झरे अमृत अति भलो; अति नील अंजन घनसप्रभ वृत्तबिंदु समाकुलो, अति चपल दुरगम पवन मंडल लहे पंडित गुणनिलो. २ ज्वालायुत रे भीम त्रिकोण मुप्रीत छे, वह्निमंडल रे स्वस्तिकबीज समेत छे; पुर चोमेरे एह पवन नित संचरे, तिणने नित रे प्रणिधान ज्ञानी अनुसरे; For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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