________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्यानदीपिकाचतुष्पदी.
४६३
रूपी चंचल देहमें, अमूरतीक ए {झै रैः । अणु निष्पन्न शरीरने, ज्ञानी पर करि बूझे रे. ९ भा० जन्म मरण दुष उपजे, अन्य सहू ए संगो रे चल पुदगलथी ऊपनो, तिणसुं केहो रंगो रे. १० भा एह शरीर न ताहरौ, तो किम परजन धन्नो रे, पंच द्व्यनो संगते, चेतनथी सहू भिन्नो रे. ११ भा० मित्र स्त्री सुत संपदा, मात पिता वलि देहो रे ज्ञान भाव चित्तमें धरी, भिन्न गिणे सहु एहो रे. १२ भा० मिथ्या बंध्यो तूं भम्यो, भवमें दुष बहु पायो रे निश्चल भ्रम विण शाश्वतौ, हिव चेतन घर आयो रे. १३ भा०
नंदनीक मइलो सदा, अशुचिभर्यो ए देह शुक्रादिवथी ऊपनौ, जाणि दुगंछा गेह. अशा मां, लोहीभर्यो, जूनो कीकस थान; नशाबध दुरगंध ए, इणरौ किसौ वषाण. नवे द्वार झरता रहै, दूरमिगंध क्षण नीत; रोग जरा कृमि गेह ए, इणसू केही प्रीत. जे देषे इण देहमे, तेह दुगंछा गेहा
धोवे जे जलथी तिको, सहज बिगाडे एह. ढाल-धरम हीयै धरो. एहनी.
एह शरीर जे आपणो रे, वीट्याउ चर्म न होइन तो माषी कृमि कागथी रे, राषि न सके कोयो रे. १ भावना भावीय, भावन शिव सुष साथो रे; गुणनिधि सम अछे, इम आषे जगनाथो रे. २ भा०
For Private And Personal Use Only