________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आगमसार.
११
हवे वक्तव्य तथा अवक्तव्य पक्ष कहेछे. ए छ द्रव्यमां अनंता गुण पर्याय ते वक्तव्य एटले वचने कहेवा योग्य छे अने अनंता गुण पर्याय ते अवक्तव्य एटले वचने कह्या जाय नहीं एवा छे. तिहां केवली भगवते समस्त भाव दीठा तेने अनंतमे भागे जे वक्तव्य एटले कहेवा योग्य हता ते कडा वली तेनो पण अनंतमो भाग श्रीगणधर देवे सूत्रमा गुंथ्यो ते सूत्रमा गुंथ्या ते ने असंख्यातमे भागे हमणां आगम रह्यां छे ए छ द्रव्यमां आठपक्ष कह्या.
हवे नित्य तथा अनित्य पक्षयी चौभंगी उपनी ते कहे छे एक जेनी आदि नथी अने अंत पण नथी ते अनादि अनंत पहेलो भांगो अने जेनी आदि नथी पण अंत छे ते अनादि सांत बीजो भांगो तथा जेनी आदि पण छे अने अंत एटले छेहेडो पण छे ते सादि सांत बीजो भांगो वली जेहने आदि छे पण अंत नथी ते सादि अनंत नामे चोयो भांगो जाणवो.
हवे ए चार भांगा छ द्रव्यमां फलावी देखाडे छे. जीव द्रव्यमा ज्ञानादिक गुण ते अनादि अनंत छ नित्य छ, अने भव्य जीवने कर्म साथे संबंध तथा संसारीपणानी आदि नथी पण सिद्ध थाय तेवारे अंत आव्यो तेथी ए अनादि सांत भांगो छे, अने देवता तथा नारकी प्रमुखना भव करवा ते सादिसांत भांगो छे, अने जे जीव कर्म खपावी मोक्ष गया तेनी सिद्धपणे आदिछे अने पाछो संसारमा कोइ काले आवq नथी माटे अंत नथी तेथी ए सादि अनंत मांगो छे. ए जीव द्रव्यमांचौभंगी कही. जीव द्रव्यना चार गुण अनादि अनंतछे. जीवने कर्म साथे संयोग ते अनादि सांतछे केमके केवारे पण कर्म छुटे छे.
For Private And Personal Use Only