________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आगमसार.
तारुण्य अवस्था दिएछे, तथा अनादि संसारी जीव भवस्थिति परिपाक छतां एक अंतर्मुहूर्तकालमां सकलकर्म निर्जरी मोक्ष पहोंचे तिहां सिद्ध अवस्थायें अनंतोकाल पर्यंत जीव अनंता सुखने विलसे माटे कालद्रव्य पण जीवने भोग थाय छे. पण एक जीव द्रव्य कोइने भोग आवतो नथी माटे अकारण कयुं अने पांच द्रव्य भोग आवे माटे कारण कह्यां तथा घणी प्रतोमां तो संक्षेपे एटलुं छे जे छ द्रव्यमा एक जीव द्रव्य कारण छे. पांच द्रव्य अकारणछे ए पण वात घणीरीते मलतीछे. माटे जे बहुश्रुत कहे ते खरं. मारी धारणा प्रमाणे जीवद्रव्य कारण अने पांच द्रव्य अकारण एम संभवे छे” निश्चयनयथी छए द्रव्य कर्ताछे अने व्यवहारनयें एक जीवद्रव्य कर्ताछे. बाकी पांचद्रव्य अकर्ता छे. छद्रव्यमां एक आकाशद्रव्य सर्वव्यापी छे. अने पांचद्रव्य लोक व्यापी छे. छए एक खेत्रमा एकठा रह्यां छे पण एक बीजा साथे मली जाय नहीं ए छ द्रव्यनो विचार कयो.
हवे एकेका द्रव्यमां एक नित्य, बीजो अनित्य त्रीजो एक चोथो अनेक, पांचमो सत्, छठ्ठो असत्, सातमो वक्तव्य, आठमो अवक्तव्य, ए आठ आठ पक्ष कहेछे.
धर्मास्तिकायना चार गुण नित्यछे तथा पर्यायमां धर्मास्तिकायनो एक खंध नित्यछे. बाकीना देश प्रदेश तथा अगुरुलघु पर्याय अनित्यछे. अधर्मास्तिकायना चार गुण तथा एक लोकप्रमाण खंध नित्यछे अने एक देश, बीजो प्रदेश, बीजो अगुरुलघु ए त्रण पर्याय अनित्यछे. तथा आकाशास्तिकायना चार गुण तथा लोकालोकप्रमाणबंध नित्यछे अने एक देश, बीजो प्रदेश. त्रीजो अगुरुलधु ए त्रण पर्याय अनित्यछे. तथा कालद्रव्यना चार गुण नित्यछे अने चार पर्याय अनित्यछे. पुद्गल द्रव्यना चार गुण नित्य
For Private And Personal Use Only