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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
भवभीरु जगत् जीवोना उपकारी एवा श्रुत आम्नायधर जे श्रुतने अनुसार कहे तेनो वचन पण प्रमाण मानQ.
तथा कोइक फलरूप लिंगे करीने जे अजाण्या पदार्थनो निर्धार करिये ते अर्थापत्ति प्रमाण कहिये. जेम देवदत्तनो पीन के० पुष्ट शरीर छे पण ते देवदत्त दिवसनो जमतो नथी तेवारे अर्थापत्तिथी 'जाणीये जे रात्रे जमतो हशे माटे पुष्ट शरीर छे. एम अर्थापत्ति प्रमाण जाणवो. ए प्रमाण ते जाते अनुमाननो अंश छे ते माटे श्री अनुयोगद्वारमा प्रथम कह्यो नथी..
इहां दर्शनांतरीयो जे प्रमाण माने छे पण ते सत्य नथी जेम छ प्रकारना इंद्रिय सन्निकर्षथी ऊपनो जे ज्ञान तेने नैयायिक प्रत्यक्ष प्रमाण कहे छे, अने परब्रह्मने इंद्रिय रहित माने छे ज्ञानानंदमयी माने छे तेवारे इंद्रिय रहित ज्ञान ते अप्रमाण थाय छे. इत्यादिक अनेक युक्ति छे ते माटे ते प्रमाण नही. तथा चार्वाक मतवाला मात्र एक इंद्रियप्रत्यक्षनेज प्रमाण माने छे एम दर्शनांतरीयना अनेक विकल्प टालीने सर्व नय निक्षेप सप्तभंगी स्थाद्वादयुक्त जे वस्तु जीव तथा अजीवनो सम्यक् ज्ञान जेनामां होय तेने सम्यक् ज्ञानी कहिये ए ज्ञान- स्वरूप कयुं.
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं । यथार्थहयोपादेयपरीक्षा. युक्तज्ञानं सम्यग्ज्ञानं । स्वरूपरमणपरपरित्यागरूपं चारित्रं। एतद्रनत्रयीरूपमोक्षमार्गसाधनात्साध्यसिद्धिः। इत्यनेनात्मनः स्वीय स्वरूपं सम्यग्ज्ञानं ज्ञानप्रकर्ष एवात्मलाभः ज्ञानदर्शनोपयोगलक्षण एवात्मा छद्म
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