________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
१७१
nAARAAAAAAna
ऋजुसूत्र ग्रहे छे अने जे जाणपणारूप कार्यपणे थाय ते शब्दनय कहियें ए फेर छे.
वर्तमानकालने पण ग्रहण करे ते ऋजुसूत्राभास कहिये, जे छता भावने अछता कहे अथवा विपरीत कहे जेम जीवने अजीव कहे, अजीवने जीव कहे इत्यादिक ते तथा गत के. बौद्धनो मत छे जे छतो सदा सर्वदा वर्ततो जीवादि द्रव्य तेना पर्यायने पलटवे सर्वथा द्रव्यने विनाशि माने तेने ऋजुसूत्रनयाभासाभिप्राय जाणवो ए ऋजुसूत्रनय कह्यो.
एकपर्यायपाग्भावेन तिरोभाविपर्यायग्राहकः शब्दनयः, कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपाद्यमानः शब्दः,जलाहरणादिक्रियासमर्थ एव घटः, न मृत्पिडादौ तत्त्वार्थवृत्तौ शब्दवशादर्थप्रतिपत्तिः तत्कार्यधर्मे वर्तमानवस्तु तथा मन्वानः शब्दनयः । शब्दानुरूपं अर्थपरिणतं द्रव्यमिच्छति त्रिकालत्रिलिंगत्रिवचनप्रत्ययप्रकृतिभिः समन्वितमर्थमिच्छति तद्भेदे तस्य तमेव समर्थमाणस्तदाभासः।
अर्थ ॥ हवे शब्दनय कहे छे जे वस्तुना एक पर्यायने प्रगट देखवे बीजा शब्द वाचकपर्यायने तिरोभावें अणप्रकटवें पण ते पर्यायने ग्रहे अथवा काल त्रण वचन त्रण लिंग त्रण तेने भेदें शब्दनो भेद पडे ते भेदेंज अर्थने कहे अथवा जलाहरणादि समर्थने घट कहे तथा कुंभादिक चिन्ह पर्याय जेटला छे तेटलानो अर्थ वर्ततो न देखाय तो पण तेने नाम कही बोलावे एम जेमां कार्यनो सामर्थ्यवंतपणो छे तेने ग्रहे पण माटीना पिंडने घट कहे नही ते शब्दनय कहिये अने
For Private And Personal Use Only