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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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अर्थ ॥ हवे स्याद्वाद रत्नाकरथी नयस्वरूप लखिये छैयें नीयते के पमाडीये जे थकी श्रुतज्ञान स्वरूप प्रमाणे विषये कीधो जे पदार्थनो अंश ते अंशथी इतर के० बीजो जे अंश ते थकी उदासीपणो तेने पडि वर्जवा वालानो जे अभिप्राय विशेष तेने नय कहिये एटले वस्तुना अंशने ग्रहे अने अन्यथी उदासीनपणो ते नय कहिये. एक अंशने मुख्य करीने बीजा अंशने उत्थापे ते नयाभास कहिये. ते नयना बे भेद छे एक द्रव्यार्थिक बीजो पर्यायार्थिक तेमां द्रव्यार्थिकना १ नैगम २ संग्रह, ३ व्यवहार, ४ ऋजुसूत्र ए चार भेद छे. केटलाक आचार्य ते ऋजुसूत्रने विकल्परूप माटे भावनय गवेषे छे ते रीते द्रव्यार्थिकना त्रण मेद छे.
हवे नैगमनयनुं स्वरूप कहे छे. जे धर्मने प्रधानपणे अथवा गौणपणे अथवा धर्मीने प्रधानपणे अथवा गौणपणे तथा धर्म धर्मी ए बेउने प्रधानपणे तथा गौणपणे जे गवेषवो एटले धर्मोनी प्राधान्यता ते वारे पर्यायोनी प्रधानता थयी अने जिहां धर्मीनो प्रधानपणो तिहां द्रव्यनो प्रधानपणो तेमज गौणपणो तथा धर्म धर्मीनो प्रधान गौणपणो ए रीते जे द्रव्य पर्यायनो गौण प्रधानपणानी गवेषणा रूप ज्ञानोपयोग ते नैगमनय जाणवो तेना बोधने नैगम बोध कहिये तेना उदाहरण कहे छे.
सत् के० छतापणे चैतन्य के० जाणपणो ए बे धर्म मध्ये एक धर्म पक्ष मुख्यपणे गणे अने बीजाने गौणपणे न गवेषे. ए रीतें नैगमनय जाणवो. इहां चैतन्य नामे जे व्यंजन पर्याय तेने प्रधानपणे गणे केमके चैतन्यपणो ते विशेष गुण छे अने सत्वनामा व्यंजन पर्याय छे ते सकल द्रव्य साधारण छे ते माटे तेने गौणपणे लेखवे ए नैगमनो प्रथम भेद कयो.
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