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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
~~rrrrrrrr ...com ऋजुसूत्रनी अपेक्षायें अछतो छ केमके अतीत तो विणसी गयो छे अने अनागत आव्यो नथी तेवारें अतीतअनागत ए बे अवस्तु छे अने जे वर्तमान पर्यायें वर्ते ते वस्तुपणो छे जे पूर्वकाल पश्चात्काल लेयी वस्तु कहेवी ते नैगमनय छे आरोपरूप छे तिहां कोइ पुछे जे संसारीकर्मा जीवने सिद्धसमान कहे छे ते तो अनागतकाले सिद्ध थशे तो तमे अनागतने अवस्तु केम कहोछो तेनो उत्तर जे हे भव्य ! ए अनागत भावि माटे कहेता नयी एतो वर्तमान सर्व गुणनी छति आत्मप्रदेशे छे ते आवरण दोषे प्रवर्तति नथी तेथी तिरोभावीपणा माटे संग्रहन कहिये पण वस्तुमां सर्व केवलज्ञानादि गुण छता वर्ने छे ते माटे सिद्ध कहियें छैये.
अने जे वस्तु ते नामादिक पर्याय सहित वर्ते छे माटे नामादिक निक्षेपा ते सर्व ऋजुसूत्रनयना भेद छे तथा नामादिक त्रण निक्षेपा तो द्रव्य छे अने भाव ते भाव छे ए व्याख्या करण कार्यभावनी वेचण करिये ते माटे छे पण वस्तुमां सहज चार निक्षेपा ते भाव धर्मज छे तथा ए स्वस्वकार्यना कर्ता ज छे ए ऋजुसूत्रना बे भेद दिगंबर कहे छे, १ सूक्ष्मऋजुसूत्र, २ स्थूलऋजुसूत्र जे वर्तमानकालनो एक समय तेने सूक्ष्मऋजुसूत्र कहिये अने जे बहुकालि ते स्थूलऋजुसूत्र ए पण कालापेक्षी भाव छे तथा ए भावनय छे अने योगावलंबीपणो ते बाह्य छे तेपण द्रव्य माटे एक द्रव्य मध्ये गणे छे ए ऋजुसूत्रनय कयो.
'शप आक्रोशे' शपनमाह्वानमिति शब्दः, शपतीति वा आह्वानयतीति शब्दः, शप्यते आहूयते वस्तु
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