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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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तेने पर्यायार्थिक कहिये. ते द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक ए बे धर्मने द्रव्य तथा पर्याय कहिये.
इहां कोइक पुछे जे बीजो गुणार्थिक केम कहेता नथी ? ते वली रत्नाकरावतारिका मध्ये कह्यो छे “ गुणस्य पर्याये एवान्तर्मूतत्वात् तेन पर्यायार्थिकेनैव तत् सङ्ग्रहात्."
जे गुण ते पर्यायने विषे अंतर्भूत छे ते पर्यायार्थिक मध्येज संग्रह्यो छे. ते पर्याय बे भेदे छे एक सहभावि बीजो क्रमभावि. तेमां सहभावि ते गुण छे ते पर्यायने विषे अंतर्भूत छे, तिहां द्रव्य पर्याययी व्यतिरिक्त सामान्य विशेष ए बे धर्म छे माटे सामान्य विशेष बे नय वत्ता केम कहेता नथी ? एम कोइ पुछे तेने उत्तर.
जे “ द्रव्यपर्यायाभ्यां व्यतिरिक्तयोः सामान्यविशेषयोरप्रसिद्धः तथाहि द्विप्रकारं सामान्यमुक्तमूर्खतासामान्य तिर्य
सामान्यं च तत्रोर्वसामान्यं द्रव्यमेव तिर्यक्सामान्यं तु प्रतिज्यत्तिासहशपरिणामलक्षणं व्यञ्जनपर्याय एव. " ए पाठथी ऊर्ध्व सामान्य ते द्रव्यनो धर्म छे अने तिर्यक्सामान्य ते पर्याय धर्म छे " विशेषोऽपि वैसाहश्यविवर्त्तलक्षणं पर्याय एवान्तर्भवति नैताम्यामधिकनयावकाशः " _ विशेषपणे अनेक रीतें वर्तवानो लक्षण छे ते पर्यायने विषे अंतर्भाव छे ते माटे मिन्न नयनो अवकाश नथी. ए बे नय मध्येज अंतर्भाव छे. तेमां वली द्रव्यार्थिकमा चार भेद छे १ नैगम, २ संग्रह, ३ व्यवहार, ४ ऋजुसूत्र तथा पर्यायार्थिकना प्रण भेद छे. १ शब्द, २ समभिरूढ, ३ एवंभूत. ..
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