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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
३ एक गुणना अविभाग अनंता छे तेनो पिंडपणो ते गुणपर्याय कहिये ४ गुणव्यंजन पर्याय ते ज्ञाननो जाणंगपणो तथा चारित्रनो स्थिरतापणो इत्यादिक अथवा ज्ञानगुणना भेदांतर ज्ञानना भेद जे मतिज्ञानादिक पांच तथा दर्शनगुणना चक्षुर्दर्शनादिक भेद तथा चारित्र गुणना क्षमादिक भेद, पुद्गलनो रूपी गुण तेना भेद वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संस्थानादिक, अरूपी गुणना अवर्ण, अगंधे, अरसे, अफासे, इत्यादिक चार चार जाणवा ते गुण व्यंजन पर्याय, ५ स्वभाव पर्याय ते वस्तुनो कोइक स्वभावज एवो छे ते अगुरुलघुपणे छे, छ प्रकारनी वृद्धि तथा छ प्रकारनी हानि एवी रीते बार प्रकारें परिणमे छे. इहां कोइ प्रेरकनो योग नथी. वस्तुने मूल धर्मनो हेतु छे. एनुं स्वरूप पूरूं वचनगोचर नयी. अनुभव गम्य नयी. केमके श्रीठाणांगसूत्रनी टीका मध्ये श्रुतज्ञान वृद्धिना सात अंग छे तिहां प्रथम सूत्रअंग बीजं निर्युक्तिअंग, ३ भाग्यअंग, ४ चूर्णिवालो सूत्रादि सर्वना अर्थ कहे छे. ५ टीका व्याख्या निरंतर ए पांच अंग तो ग्रंथरूप छे. तथा छठ्ठो अंग परंपरारूप छे तथा सातमुं अंग अनुभव ए साते कारणे विनय सहित भणतां सुणतां थकां साचा अर्थ पामिने आत्मानुं निर्मल ज्ञान थाय. श्री भगवतीसूत्रे "गाथा" सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ नियुत्तिमिसिओ भणीओ, तइयो अ निरवसेसो, एस विहि होइ अणुओगे, ए पांच पर्याय का ते सर्व द्रव्य मध्ये छे.
६ विभाव पर्याय ते जीव तथा पुद्गल मध्येज छे, ते विभाव पर्याय जीवने नरनारकीपणं पामवुं ते तथा पुद्गलनो are त्र्यणुकादिक खंधनो मिलकं, अनंतागुण पर्यंत अनंतपुद्गल स्कंधरूप ते विभाव पर्याय कहियें,
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