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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
च भवन्ति अन्यथा तत्र नवोत्पादव्ययौ नापेक्षिकाविति न्यूनं एवं सल्लक्षणं स्यात् इति षष्ठः ॥
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हानि तथा १
अर्थ || तथा के० तेमज वली सर्व द्रव्य तथा पर्याय ते अगुरुलघु धर्मै संयु होय द्रव्यने प्रदेशें अगुरुलघु अनंतो छे. ते अगुरुलघु समयें समयें प्रदेशें तथा पर्यायें कोइक वारें वृद्धि पामे कोइक वारें घटी जाय ते ववुवटु थवो छ छ प्रकारें छे. १ अनंत भाग हानि, २ असंख्यात भाग हानि, ३ संख्यात भाग हानि, ४ संख्यात गुण हानि, ५ असंख्यात गुण हानि, ६ अनंत गुण हानि, ए छ प्रकारें अनंत भाग वृद्धि, २ असंख्यात भाग वृद्धि, ३ संख्यात भाग वृद्धि ४ संख्यात गुण वृद्धि, ५ असंख्यात गुण वृद्धि, ६ अनंत गुण वृद्धि. ए छ प्रकारनी वृद्धि ते सर्व द्रव्यना सर्व प्रदेशें सर्व पर्यायमां थाय. एक प्रदेशमां कोइक समयें वधे छे कोइक समये घटे छे जेम परमाणुमां वर्णादिक वधे घटे छे तेम अगुरुलघुपणो पण वधेघटे छे. हानिनो व्यय छे तो वृद्धिनो उत्पाद छे. अथवा वृद्धिनो व्यय छे तो हानिनो उत्पाद छे पण अगुरुलघु ध्रुवनो ध्रुव छे. एम सर्व द्रव्यने विषे जाणवो. तिहां तवार्थटीकामां आकाशे द्रव्यना अधिकारे कहां छे ते लखिये छैये. जिहां अलोकाकाशमध्ये अवगाहक जीव पुद्गलादिक द्रव्य नथी तिहां पण अगुरुलघुपर्यायवंतपणो अवश्य छे. ते अगुरुलघुनी अनित्यता अवश्य अंगीकारे छे अने ते अगुरुलघु ते पर्यायें तथा प्रदेशें अन्य अन्य के० बीजो बीजो थाय छे एटले पूर्व समये अगुरुलघुनो व्यय अने बीजे समये नवा अगुरुलघुनो उत्पाद छे. जो ए रीते नवो उत्पाद व्यय
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