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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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वली द्रव्यपणाचें लक्षणांतर कहे छे. उत्पादपर्यायनी जे प्रसवशक्ति एटले आविर्भाव लक्षण जे शक्ति तेना व्ययीभूत पर्यायनो तिरोभाव थयो अथवा अभाव थवा रूप शक्तिनो जे आधारभूत धर्म तेने द्रव्यत्व कहिये.
४ स्व के० पोते आत्मा अने पर के० पुद्गलादिक धर्मास्तिकायादिक अन्य द्रव्य तेने यथार्थपणे जाणे ते ज्ञान कहिये. ते ज्ञान पांच भेदें छे. ते ज्ञानना उपयोगमां आवे एवी जे शक्ति तेने प्रमयेत्वपणो कहिये ते प्रमेयपणो सर्व द्रव्य- मूल धर्मछे. प्रमाणमां वसाव्यो जे वस्तु तेने प्रमेयपणो कहिये. ते सर्व गुण पर्याय प्रमेय छे अने आत्मानो ज्ञानगुण तेमां प्रमाणपणो तथा प्रमेयपणो ए बे धर्म छे,पोतानो प्रमाणपणो ते पोतेज करे छे, दर्शनगुणनो प्रमाणज्ञान गुण करे छे, केमके दर्शनगुण ते विशेष छे. जे सावयव होय ते विशेषज होय अने जे विशेष होय ते ज्ञानथीज जणाय. दर्शनगुण ते सामान्य धर्मनो ग्राहक छे ते पण प्रमाण कहेवाय पण प्रमाणना भेद कह्या छे. तिहां ज्ञानज ग्रयुं छे तेनुं कारण जे दर्शनोपयोग ते व्यक्त पडतो नथी ते माटे प्रमाण मध्ये गवेष्यो नथी. ते प्रमाणना मूल बे भेद छे एक प्रत्यक्ष अने बीजो परोक्ष. स्पष्टं प्रत्यक्ष परोक्ष मन्यत् इतिस्याद्वादरत्नाकरवाक्यात. __ ५ उत्पाद के० उपजवो व्यय के विणसवो ध्रुव के० नित्यपणो वस्तुना एक गुणमां एक समये ए त्रणे परिणमनें सदा परिणमे छे एवो जे परिणाम ते सत्पणो कहिये अने ते सत्पणानो भाव ते सत्वपणो कहिये.
६ तथा छठो १ अनंतभाग हानि, २ असंख्यात भाग
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