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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
पांच द्रव्य सप्रदेशी छे, ते प्रदेशना पिंडपणा माटे अस्तिकायपणो पांच द्रव्यने छे. अने छठो कालद्रव्य तेने प्रदेश नथी ते माटे अस्तिकायता नथी तिहां काल ते मुख्यवृत्तिये द्रव्य नथी, उपचारथी द्रव्य कहेवाय छे. जेम वस्तुगते धर्मास्तिकायादिक द्रव्य छे तेम काल द्रव्य नथी. जो ए कालने पिंडरूप द्रव्य मानियें तो एनो मान किहां छे ? जो मनुष्यक्षेत्रमा काल गव्य मानियें तो बाहिरना क्षेत्रमा नवपुराणादिक तथा उत्पाद व्यय कोण करे छे ? अने जो चौदराजलोकमां व्यापी मानीयें, तो असंख्यात प्रदेश मानवा जोइयें अने प्रदेश मानवे करी अस्तिकाय थाय, अने जो रेणुक असंख्याता मानियें, तो लोकप्रदेश प्रमाण रेणुक थाय ते वारे असंख्याता काल द्रव्य थाय. ते तो अनंत द्रव्य मान्यो छे माटे ए कालने पंचास्तिकायना वर्तनारूप पर्यायने आरोपे द्रव्य मानियेंकेमके अस्तिकायता नथी. अने सर्वमा वर्तना करे ए पक्ष सत्य छे जे आगमने विषे ठाणांगसूत्रना आलावामां छे. किं भंते अद्धासमयेतिवुच्चत्ति ? गोयमा जीवा चेव अजीवा चेव एटले काल ते जीव तथा अजीवनो वर्तमानपर्याय छे तेना उत्पाद व्ययरूप वर्तनाने काल कह्यो छे ते कालने अजीव द्रव्यमां गण्यो तेनो आशय ए छे जे जीव वर्त्तनाथी अजीववर्त्तना अनंतगुणी छे ते बहुलता माटे कालने अजीव गवेष्यो छे केमके कालनी वर्त्तना अजीव ऊपर अनंति छे अने जीव ऊपर तेथी थोडी छे माटे.
तथा विशेषावश्यकभाष्यमध्ये न पश्यति क्षेत्रकालावसौ तयोरमूर्त्तत्वात्, अवधेश्च मूर्त्तिविषयत्वात्; वर्तनारूपं तु कालं पश्यति द्रव्यपर्यायत्वात्तस्येति तथा बावीसहजारीमध्ये तथा कालस्य वर्त्तनादिरूपत्वात् पर्यायत्वात्, द्रव्योपक्रमः उपचारात्
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