________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४१) जाणे छे. तेने मारुं मारुं करतो फरे छे, तेनी वृद्धि देखी खुशी थाय छे, तेनो नाश देखी रडे छे, कुटे छे, शोक करे छे, अने तेने माटे पोताना प्राणनो पण नाश करे छे, तेने पोतानुं मानी तेना कतोमानी जीव, पापनो अधिकारी पोते थाय छे, ए रीते उपचरित व्यवहारनये जीवने कर्ता जाणवो. ____ हवे छठा अनुपचरित व्यवहारनये जीव शरीर आदि परवस्तु, जे पोताना स्वरूपथी प्रत्यक्षपणे जुदी छे, पण परिणामिक भावे लोली भूतपणे एकठी मली रही छे, तेने जीव पोतानी करी जाणे छे. एवां शरीरने जीव अनंतिवार पाम्यो, अने अनंतिवार ते शरीरनो त्याग कर्यो, तोपण अज्ञानपणे जीव तेने पोतानुं करी जाणे छे, तेने वास्ते अ
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only